आंखों का खुला होना ही द्वार है - ओशो
प्यारी जयति,
प्रेम।
सत्य आकाश की भांति है-अनादि और अनंत और असीम। क्या आकाश में प्रवेश का कोई द्वार है? तक सत्य में भी कैसे हो सकता है? पर यदि हमारी आंखें ही बंद हो तो आकाश नहीं है। और ऐसा ही सत्य के संबंध में भी है। आंखों का खुला होना ही द्वार है। और आंखों का बंद होना ही द्वार का बंद होना है।
रजनीश के प्रणाम
२०-८-६९ प्रति : श्री जयवंती शुक्ल, जूनागढ़, गुजरात
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