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    जीवन को नृत्य बना - ओशो

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    प्यारी नीलम, प्रेम। 

            जीवन का प्रयोजन न खोज। वरन जी-पूरे हृदय से। जीवन को गंभीरता मत बना। नृत्य बना। सागर की लहरें जैसे नाचती हैं, ऐसे ही नाच । फूल जैसे खिलते हैं, ऐसे ही खिल। पक्षी जैसे गीत गाते हैं, ऐसे ही गा। निष्प्रयोजन-अकारण। और फिर सब प्रयोजन प्रकट हो जाता है। और फिर सब रहस्य अनावृत्त हो जाते हैं।

            प्रसिद्ध आस्ट्रिन चिकित्सक रोकिटान्सकी ने एक बार किसी विद्यार्थी से पूछा : जीवन का प्रयोजन क्या है। जीवन का अर्थ क्या है? वह विद्यार्थी एक क्षण लड़खड़ाया और फिर कुछ याद करता सा बोला : महोदय! कल तक मुझे याद था, लेकिन अभी मैं विलकुल ही याद नहीं कर पा रहा हूं। रोकिटान्सकी ने आकाश की ओर देखकर कहा : हे परमात्मा! एक ही व्यक्ति को तो केवल पता था और वह भी भूल गया है। परिवार में सव को प्रेम 


    रजनीश के प्रणाम
    १६-११-७०

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