प्राणों के गीत - ओशो
मेरे प्रिय, प्रेम।
सुबह सूर्योदय के स्वागत में जैसे पक्षी गीत गाते हैं ऐसे ही ध्यानोदय के पूर्व भी मन प्राण में अनेक गीतों का जन्म होता है। वसंत में जैसे फूल खिलते हैं, ऐसे ही ध्यान के आगमन पर अनेक-अनेक सुगंधे आत्मा को घेर लेती हैं। और वर्षा में जैसे सब ओर हरियाली छा जाती हैं, ऐसे ही ध्यान की वर्षा में भी चेत ना नाना रंगों से भर उठती है। यह सब और बहुत कुछ भी होता है। लेकिन, यह अंत नहीं, बस आरंभ ही है। अंततः तो सब खो जाता है। रंग, गंध, आलोक, नाद-सभी विलीन हो जाते हैं। आकाश जैसा अंतआकाश (टददमत चंवम) उदित होता है। शून्य, निर्गुण, निराकार। उसकी करो प्रतीक्षा, उसकी करो अभीप्सा। लक्षण शुभ हैं, इसलिए एक क्षण भी व्यर्थ न खोओ और आगे बढ़ो, मैं तो साथ हूं ही
रजनीश के प्रणाम
१६-११-१९७० प्रति : श्री राजेंद्र आर. अंजारिया, बाम्बे ब्लाक्स, मणिनगर, अहमदावाद
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