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    जीवन है असुरक्षा-अव्यवस्था - ओशो

    Life-is-insecurity-disorder-Osho


    प्यारी जयति. प्रेम। 

            तेरा पत्र पाकर आनंदित हूं। इतनी ही पीड़ा झेलनी पड़ती है-यह तो प्रसव पीड़ा है न, स्वयं को जन्म देने की प्रस व पीड़ा। और पीछे लौटना संभव नहीं है। जहां लौटा जा सके, वह अतीत बचता ही कहां है? समय उन सीढ़ियों को सदा ही गिरा देता है जिससे चढ़कर कि हम वर्तमान तक आते हैं। लौटना नहीं, बस आगे जाना ही संभव है। आगे और आगे। और अंतहीन है वह यात्रा। मंजिल नहीं है, मुकाम नहीं है। बस पड़ाव हैं क्षण भरी के। तंबू हैं कि लग भी नहीं पाते उखड़ना शुरू हो जाता है।

            और अव्यवस्था से भयभीत क्यों? व्यवस्थाएं मात्र झूठी हैं। जीवन है अव्यवस्था-असुरक्षा। और जिसे सुरक्षित होना है, उसे मरने के पहले ही मर जाना होता है। लेकिन, मरने की जल्दी क्या है। वह कार्य तो मृत्यु स्वयं ही कर देगी। तब क्या ठीक नहीं है कि हम जी लें। और आश्चर्य तो यह है कि जीना जान लेता है, मृत्यु उसका घर भूल जाती है। क्योंकि, यही आवश्यक है। माली बीज बोकर क्या चूपचाप प्रतीक्षा नहीं करता है? लेकिन जब भी मेरी जरूरत होगी तब तू पाएगी कि मैं सदा पास में ही हूं। डा, को प्रेम। वहां सबको प्रणाम। 


    रजनीश के प्रणाम
    १७-२-७० प्रति : सुश्री जयवंती, जूनागढ़

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