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    दुनिया को संन्यासियों की कोई जरूरत नहीं है, दुनिया को संन्यास की जरूरत है - ओशो

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    दुनिया को संन्यासियों की कोई जरूरत नहीं है, दुनिया को संन्यास की जरूरत है - ओशो 

              जो आदमी गृहस्थी में दुखीऔर पीड़ित और परेशान था वह संन्यासी होकर कभी आनंदित नहीं हो सकता. व योकि वह आदमी तो वही का वही है। कपड़े बदलने से क्या होगा? जो आदमी दुकान पर परेशान और पीड़ित है, वह मंदिर में जाकर आनंद को उपलब्ध नहीं हो सकता, क्योंकि वह आदमी तो वही का वही है। दुकान थोड़ी परेशान कर रही है। मकान थोड़ी परेशान कर रहा है मंदिर थोड़ी आनंद देगा। वह आदमी जैसा है. अपने साथ ही ले जाएगा।

              यह बड़े आश्चर्य की बात है, अपने से भागना संभव नहीं होता। कोई अपने से नहीं भाग सकता। आप सारी दुनिया को छोड़कर भाग जाए लेकिन अप तो अपने साथ होंगे और आप जैसे आदमी हैं, ठीक वैसी दुनिया जहां आप होंगे फिर आप पैदा कर लेंगे। इसलिए जब गृहस्थ भागकर संन्यासी हो जाते हैं तो वे नयी गृहस्थियां बसाने लगते हैं, शिष्यों की, शिष्याओं की नयी दुनिया बसनी शुरू हो जाती हैं। जब वे घर को छोड़कर भाग जाते हैं तो आश्रम बसने लगते हैं। इधर का रंग छोड़ते हैं तो वहां का नया राग पैदा कर लेते हैं। इधर एक तरफ से जो छोड़कर गए हैं नयी शक्लों में फिर का फिर वही खड़ा हो जाता है। और वह बिलकल स्व भाविक है। इसमें कोई अस्वाभाविकता नहीं कि आदमी वे, वे ही के वे हैं जो कि घर थे, जो कि दुकान में थे। इसलिए जब कोई आदमी दुकान को छोड़कर संन्यासी होता है तो वह धर्म की नयी दुकान शुरू कर देता है। और दुनिया में जो धर्म की दुकाने शुरू हुई हैं, वह उन दु कानदारों के कारण हुई हैं जो कि दुकानदार थे और संन्यासी हो सके। उनकी बुद्धि, उनके सोचने के ढंग, उनके गणित और हिसाब वही के वे हैं। उनकी वृत्ति, उनकी पकड़, उनकी एप्रोच वही की वही है। वे, वे ही के आदमी हैं, और इसलिए जितने  ज्यादा दुकानदार संन्यासी होते जाते हैं उतना ज्यादा संन्यास दुकानदारी में परिणत होता जाता है।

              दुनिया में संन्यासियों की जरूरत नहीं है, दुनिया में संन्यास की जरूरत है, संन्यासियों की कोई जरूरत नहीं। मैं आपसे कहूँ, दुनिया में संन्यास की जरूरत है. संन्यासियों की कोई जरूरत नहीं है। दुनिया में संन्यास जितना ज्यादा होगा, दुनिया उतनी बेहतर होगी और दुनिया में संन्यासी जितना ज्यादा होंगे दुनिया उतनी मुश्किल में पड़ती जाएगी। यह कल्पना करिए, सारे लोग संन्यासी हो गए हैं. इस दुनिया का क्या होगा? इसलिए स्थिति कैसे बदतर हो जाएगी। लेकिन यह कल्पना करिए कि दुनिया में संन्यास बढ़ता जाता है, यह दुनिया बहुत बेहतर हो जाएगी।

    -ओशो 

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