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    जब तक प्रतियोगिता है, महत्वाकांक्षा है, तब तक मनुष्य जाति युद्ध से मुक्त नहीं हो सकती - ओशो


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    जब तक प्रतियोगिता है, महत्वाकांक्षा है, तब तक मनुष्य जाति, युद्ध से मुक्त नहीं हो सकती

              पहले महायुद्ध में हेनरी फोर्ड कुछ मित्रों का एक जत्था लेकर युद्ध की समाप्ति के लए युरोप की तरफ आया। अमरीका से उसने एक जहाज लिया। कुछ मित्र इक्ट्ठे ि कए जो शांति वादी थे और उस जहाज में उनको लेकर वह युरोप की तरफ गया, ताकि वहां शांति की बातें और खबर पहुंचायी जा सके शांति का मिशन लेकर वह आया। लेकिन हेनरी फोर्ड, जैसे ही जहाज शुरू हुआ, पछताने लगा मन में। उससे भू ल कर ली थी। जिन लोगों को लेकर वह जहाज में चला था शांति के लिए, वे अब आपस में लड़ने लगे।

              उसमें कई कई तरह के राजनीतिज्ञ थे। उसमें एक तरह का शांतिवादी था, उसमें दूसरे तरह के शांति वादी थे। उसमें प्रजातंत्रवादी थे, उसमें सा ग्यवादी थे। उसमें कैथोलिक थे, उसमें प्रोटेस्टेंट थे। उसमें इन आइडियोलाजी को मानने वाले थे, उस आइडियोलाजी को मानने वाले थे। वह जहाज जैसे ही बंदरगाह  से छूटा, वे आपस में लड़ने लगे।  हेनरी फोर्ड मन में पछताया और उसने सोचा, ज्ञ लोग को ले जाकर शांति की बात करनी असंभव है। जो आपस में लड़ते हो, वे शांति के लिए क्या कर सकेंगे।

              हम सारे लोग, जो मनुष्य के भविष्य के लिए विचार करते हो और जिनके मन में यह खयाल आता हो कि जीवन को बचाना और सुरक्षित करना आवश्यक है, उन्हें कुछ बातों पर विचार करना होगा। सबसे पहली बात तो यह विचार करनी होगी। क हम जो व्यक्ति गत रूप से छोटी छोटी बातों में लड़ते हैं और संघर्ष करते हैं। क ही वही संघर्ष, कहीं वही लड़ाई अंततः बड़े पैमाने पर राष्ट्रों का युद्ध तो नहीं बन जाती है? हम जो व्यक्तिगत रूप से करते हैं, छोटे-छोटे रूपों में वही इकट्ठे होकर बडे पैमाने पर युद्ध बन जाता है। कोई राजनीतिक, कोई समाज सुधार मूलतः अंतर नहीं ला सकेगा, अगर व्यक्तियों के चित्त इस बात को समझने में समर्थ न हो जाए कि उनके भीतर जब तक द्वंद्व है, जब तक संघर्ष है, जब तक प्रतियोगिता है, एम्बी शन है, महत्वाकांक्षा है, तब तक मनुष्य जाति युद्ध से मुक्त नहीं हो सकती।

    - ओशो 

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