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    Aankhon Dekhi Sanch ( Hindi ) - Osho


    आँखों देखी सच 

    जीवन की खोज , मेरे प्रिय आत्मन, 


    मैं सोचता था, क्या आपसे कहूं? कौन सी आपकी खोज है? क्या जीवन में आप चा हते हैं? खयाल आया, उसी संबंध में थोड़ी आपसे बात करूं तो उपयोगी होगा। मेरे देखे, जो हम पाना चाहते हैं से छोड़कर और हम सब पाने के उपाय करते हैं। इसलिए जीवन में दुख और पीड़ा फलित होते हैं। जो वस्तुतः हमारी आकांक्षा है, ज ो हमारे बहुत गहरे प्राणों की प्यास है, उसको ही भूलकर और हम सारी चीजें खोज ते और इसीलिए जीवन एक वंचना सिद्ध हो जाता है। श्रम तो बहुत करते हैं, और परिणाम कुछ भी उपलब्ध नहीं होता। दौड़ते बहुत हैं, लेकिन कहीं पहुंचते झरने उ पलब्ध नहीं होते। जीवन का कोई स्रोत नहीं मिलता है। ऐसा निष्फल श्रम से भरा हु आ हमारा जीवन है। इस पर ही थोड़ा विचार करें। इस पर ही थोड़ा विचार मैं आ पसे करना चाहता हूं। 

            क्या है हमारी खोज? यदि हम अपने पर विचार करेंगे, देखेंगे, आंखें खोलेंगे तो क्या दिखाई पडेगा? क्या हम खोज रहे हैं? शायद साफ ही हमें अनुभव हो, हम लोग सुख को खोज रहे हैं। और लगेगा कि मनुष्य का प्राण सुख तो चाहता है-मनुष्य का ही क्यों, और सारे पशुओं की आकांक्षाएं सुख को पाने के लिए हैं, ऐसा हम विचा र करेंगे। हर कोई सुख चाहता है, लेकिन मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूं प्रथम ही, और फिर उस पर विस्तार से समझाने का प्रयास करूंगा। सुख की खोज झूठी खोज है। व स्तुतः हम सुख नहीं चाहते हैं, हम कुछ और चाहते हैं। हम क्या चाहते हैं, वह मैं आपसे कहंगा। और सूख हम क्यों नहीं चाहते, वह भी मैं आपसे कहूंगा। लेकिन आ मतौर से ऐसा प्रतीत होता है कि हम सभी लोग सुख खोज रहे हैं। यह सुख की खो ज चाहे किसी रूप में प्रकट हो रही हो-धन के रूप में, यश के रूप मग, पद के रूप में और चाहे सुख की खोज जमीन पर चल रही हो और चाहे स्वर्ग की कल्पनाओं में, लेकिन हमारा मन जाने-अनजाने इस सुख के लिए पागल है।

             क्या कभी यह विचार किया कि आज तक जमीन पर बहुत लोगों ने सुख खोजा है, लेकिन किसी ने सुख पाया है? क्या कभी यह विचार किया कि करोड़-करोड़, अरब -अरब लोग जिस बात को खोज चूके हैं और असफल हो गए, क्या मैं उसमें अपवाद सिद्ध हो जाऊंगा? और क्या कारण है कि सूख इतने लोग खोजते हैं, लेकिन सुख उपलब्ध नहीं होता है? जैसे ही किसी सुख को हम पा लेते हैं, वैसे ही वह व्यर्थ हो जाता है और हमारी आकांक्षा आगे बढ़ जाती है। ऐसा क्यों होता है? किस कारण से यह होता है? क्या सूख का स्वभाव ऐसा है कि हम उसे पाए तो वह व्यर्थ हो जाए? या कि असलियत यह है कि सुख की खोज में हम किसी और खोज को छिपाए रहते हैं अपनी आंखों से? सुख की दौड़ में हम कसी और बात को अपनी आंखों से ओझल किए रहते हैं। कोई और है हमारी खोज । और हम सुख की दौड़ में उस खोज को भुलाए रखने का उपाय करते हैं।



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