सिद्धार्थ उपनिषद Page 179
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सांख्य योग कहता है कि देह से तादात्म्य तोड़ो; चैतन्य से तादात्म्य जोड़ो. अष्टावक्र, जनक, महर्षि रमण, जे. कृष्णमूर्ति सांख्य योगी हैं. वे कहते हैं इसके लिए जागना काफी है, साधना की जरुरत नहीं. मगर निराकार जाने बिना जागरण या चैतन्य का बोध कैसे होगा? और बिना साधना के कोई निराकार कैसे जानेगा ?(484)
संबोधि के पांच सोपान हैं-: आत्म ज्ञान, अद्वैत ज्ञान, कैवल्य ज्ञान, निर्वाण ज्ञान और परम पद.
आत्मज्ञान-: आत्मज्ञान का अर्थ है स्वयं को आत्मा के रूप में जानना और उससे तादात्म्य महसूस करना. यह चेतन अंतराकाश ही हमारी आत्मा है. मैं चैतन्य आत्मा हूँ. यही आत्मज्ञान है. यही आत्मबोध है. यही संबोधि है. संबोधि का पहला सोपान यही है.
अद्वैत ज्ञान-: अद्वैत ज्ञान की घोषणा है- "सोऽहं". यह स्वयं के अद्वैत की घोषणा है. मेरा कंटेंट, मेरी आत्मा उस परम कंटेनर अर्थात परमात्मा का हिस्सा है. बस तू ही तू है. मैं न बचा. बूँद सागर में गिर गई. तू ही तू बच गया. परमात्मा ही परमात्मा. बूँद सागर में गिर गई. बूँद तो रही नहीं, मिट गई.
कैवल्य ज्ञान-: कैवल्य ज्ञान की घोषणा है-" अहं ब्रह्मास्मि". कैवल्य का अर्थ है- ऐसा क्षण आ जाये चेतना के आकाश में पूर्णतः अकेला रह जाऊं, लेकिन मुझे अकेलापन न लगे. एकाकार हो जाऊं, फिर भी मुझे दूसरे की अनुपस्थिति पता न चले. इस भांति हो जाऊं कि मेरे होने में ही सब समा जाए. मेरा होना ही पूर्ण हो जाए.
निर्वाण ज्ञान-: निर्वाण ज्ञान की घोषणा है-"हरि ओम् तत्सत" अर्थात ओंकार स्वरुप गोविन्द ही सत्य है. जैसे फैलता हुआ महानगर एक गांव को अपने में समेटकर विराट कर देता है; वैसे ही असीम परमात्मा, आत्मा को स्वयं में मिलाकर विराट कर लेता है. ज्ञान मात्र ही शेष रह जाता है. न ज्ञाता बचता है, न ज्ञेय . न बूँद न सागर, केवल भगवत्ता.
परम पद-: परम पद की घोषणा है-"ईशावास्यमिदं सर्वम्". आध्यात्मिक यात्रा की दिशा तो है, लेकिन कोई मंजिल नहीं है. इस यात्रा में कई पड़ाव आते हैं. आखिरी पड़ाव परम पद है. जिसका अर्थ है परम विश्राम. जिसमें हम परमात्मा को "अचलपुरुष" के रूप में जानते हैं. अचलपुरुष के सुमिरन में जीना ही परमपद है .
आत्म ज्ञान जिसे हम ओशोधारा के 9 वें तल के कार्यक्रम में जानते है. अद्वैत ज्ञान को हम ओशोधारा के 12 वें तल के कार्यक्रम में जानते हैं. कैवल्य ज्ञान को हम ओशोधारा के 13 वें तल के कार्यक्रम में जानते हैं. निर्वाण ज्ञान को हम ओशोधारा के 14 वें तल के कार्यक्रम में जानते हैं. परम पद ज्ञान को हम ओशोधारा के 26 वें तल के कार्यक्रम में जानते हैं.
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