सिद्धार्थ उपनिषद Page 173
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(468)
आत्मस्मरण के साथ कर्म का मज़ा साक्षी है. दूसरे शब्दों में आत्मा को शामिल करना साक्षी है.आत्मस्मरण के साथ फल का मज़ा स्वीकार भाव है. जो है, उसका सम्मान संतोष है. जो है, उसका मज़ा तृप्ति है. परमात्मा का मज़ा भक्ति है. दूसरे शब्दों में परमात्मा को शामिल करना भक्ति है. एकांत का मज़ा मुक्ति है.
अस्तित्व के साथ लयबद्धता आनंद है.
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परमपद परम विश्राम है. परम स्वीकार है. यह एक ऐसी स्थिति है, जहाँ चित्त की सारी चंचलता विदा हो जाती है. चित्त का सारा विक्षेप समाप्त हो जाता है. सारी भाग-दौड़ विदा हो जाती है. अनहद में विश्राम हो जाता है.शून्य में ठहराव हो जाता है. ऐसी ही स्थिति के लिए कबीर साहब कहते हैं-" कुछ लेना न देना मगन रहना".Page - 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20