सिद्धार्थ उपनिषद Page 171
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सभी अवतार, तीर्थंकर, बुद्ध और पैगंम्बर मूलतः योगी हैं. स्वयं मोहम्मद साहब पैगंबर होने के साथ-साथ इल्मे तसव्वुफ (अध्यात्म,ब्रह्मविद्या), इल्मे मारिफ़त (अध्यात्म ज्ञान), और इल्मे रियाज़त (योग शास्त्र) के बहुत बड़े जानकार थे. स्वयं गुरु गोरखनाथ कहते हैं- " महंमद महंमद न करि काजी, महंमद का विषम विचारं.महंमद हाथि करद जे होती, लोहै घड़ी न सारं. सब्दैं मारि सब्दैं जिलाई, ऐसा महंमद पीरं. ताके भरमि न भूलो काजी, सो बल नहीं शरीरं."
अर्थात ऐ काजी, हजरत मोहम्मद साहब को क्या समझोगे? वे तुम्हारी समझ के परे हैं. उनकी दृष्टि को समझना अत्यंत कठिन है. मोहम्मद के हाथ में लोहे कि नहीं, शब्द की तलवार थी, जिससे वे वासना को जिबह करते थे. वे शब्द से जिज्ञासु की विषय वासना को नष्ट कर देते थे और शब्दसे ही तत्वज्ञान का अमृत पिलाते थे.(463)
योग का विरोध सभी धर्मों, तीर्थंकरों, बुद्धों, पैगंबरों, कलंदरों, पीरों, और मानवता का विरोध है. योग का विरोध नास्तिकता है, कुफ्र है.(464)
सूर्य नमस्कार सूर्य की पूजा नहीं है, आसन है, योगाभ्यास है. वैसे भी सूर्य नमस्कार का अर्थ है सूर्य को सलाम, सूर्य को आदाब. सलाम और आदाब तो किसी को भी किया जा सकता है, फिर सूर्य को आदाब या सूर्य को सम्मान करने में किसी को किसी तरह की परेशानी क्यूँ होनी चाहिए.Page - 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20