सिद्धार्थ उपनिषद Page 169
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चैतन्य का कोई आकार नहीं होता है , आत्मा का कोई आकार नहीं होता है . एक परमनियम के अंतर्गत परमात्मा का एक अंश आकार के , air का बबूला हो गया . वायुमंडल से अलग होकर जैसे हवा बबूले में कैद हो जाती है , ऐसे ही हुकुम के अंतर्गत शरीर की कैद में आत्मा आ गई है . और जब मैं शरीर कह रह हूं तो सातों शरीर की भी बात कर रहा हूं . और यही चैतन्य सर्व व्यापी है , जैसे वायुमंडल सर्व व्यापी है . क्या हुआ कि हवा पानी के बबूले में कैद हो गई , पर है तो सर्व व्यापी . ऐसे ही क्या हुआ कि आत्मा किसी शरीर में कैद है आज , पर है तो सर्व व्यापी .(458)
सद्गुर केवल जागता है . सद्गुरु कौन है ? जिसने अपनी रूह को जाना है , जिसने रब को जाना है . रूह के प्रति जागरण ही असली जागरण है . जागृति रूह के प्रति होती है , भक्ति परमात्मा के प्रति होती है . ज्ञान रूह का होता है , भक्ति परमात्मा की होती है .ज्ञान जागृति है , ज्ञान का मतलब है : आत्मज्ञान . और कोई ज्ञान नहीं है . अगर परमात्मा को जानते हो तो उसको तो जान ही लिया रूह के रूप में , उसी ज्ञान को थोड़ा बढा दिया है तुमने . आध्यात्म की नींव आत्मज्ञान है .
इसलिए मुक्ति अमिशन है . और बाकी पड़ाव हैं ; तृप्ति पड़ाव है , भक्ति पड़ाव है . जिस नींव पर आध्यात्म की पूरी इमारत बनती है वो मुक्ति है . और मुक्ति आती है ज्ञान से . तुमने जान लिया कि मैं रूह हूं , बस तुम मुक्त हो गए . क्योंकि जैसे ही तुमने जाना कि मैं रूह हूं , मैं आत्मा हूं , बस कामनाएं तिरोहित हो गयीं . कामनाएं छोड़नी नहीं होती है , बस रूह को जानना होता है , कामनाएं अपने आप छूट जाती हैं . असली बात है कि मैं रूह हूं , मैं आत्मा हूं , एक मात्र यही ज्ञान है , और कोई ज्ञान नहीं है .
ओशोधारा में हम संत मत पर चल रहे हैं . और संत मत दोनों को मिला देता है . जहां आत्मा भी मुख्य है , परमात्मा भी मुख्य है . ज्ञान भी और भक्ति भी .
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