सिद्धार्थ उपनिषद Page 163
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निंदक का मतलब आलोचक ; जो तुम्हारी आलोचना करता है . कबीर साहब कहते हैं जो तुम्हारी आलोचना करता है उससे तुम नाराज मत होना . हो सकता है दस आलोचना में दो-चार आलोचना ऐसी भी हों जिसमें सच्चाई हो . और उसके अनुसार अपने में सुधार लाओ . क्योंकि अपना अवगुण दूसरों के सामने पता चलता है , अपने से पता नहीं चलता है . ' दर्पण झूठ न बोले '. तो निंदक क्या है ? आलोचक क्या है ? वो दर्पण है . इसलिए यदि कोई तुम्हारी आलोचना करता है तो उसे प्रेम से सुनो , रिस्पेक्ट से सुनो . हो सकता है उसकी बात में 4 प्रतिशत सच्चाई हो . 10 प्रतिशत भी अगर सच्चाई हो तो समझो वह तुम्हारा बड़ा उपकारी है . या वह ऐसी बात कह रहा है जो भविष्य में तुम्हारे लिए दुख का कारण हो सकती है . अभी चेतो !सामान्यतः जब कोई हमें भला-बुरा कहता है , हम उसे कहते हैं भागो यहां से . उसके साथ ऐसा व्यवहार मत करो . चाय पिलाओ , ड्राई फ्रुइट्स खिलाओ और कहो आपने यहां आने की बड़ी कृपा की , और आगे भी आने का कष्ट करते रहें .
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