सिद्धार्थ उपनिषद Page 161
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भक्ति मूल्यवान है हमारे केन्द्र की दिशा हमारे जीवन का मूल्य क्या है ? भक्ति है . लेकिन जब हम उसकी व्यवस्था के प्रति भी सम्मान से भर जाते हैं तब हम भक्ति की दिशा में कदम उठाते हैं. गोविन्द के तीन मेज़र पिलर (विष्णु-शिव-ब्रह्मा ) हैं , तथा अन्य पिलर्स (देवता ) भी हैं. ये सब गोविन्द के प्रिय लोग हैं तभी तो इनको इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेवारी दी गई है . तो क्या गोविन्द के जो प्रिय लोग हैं , गोविन्द की ओर से जो व्यवस्था देख रहे हैं , हमें उनका सम्मान करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए ?अगर हमने हुकुमी को तो सम्मान दिया , प्रेम दिया , लेकिन यदि हम उसके हुकुम , उसकी व्यवस्था के प्रति सम्मानजनक नही हैं तो हमारी भक्ति में कहीं कमी है . हमारे प्रेम में कहीं न कहीं कमी हो जाती है . इसलिए हमें उसकी व्यवस्था को भी आदर देना है . इसलिए ओशोधारा में हम उसकी व्यवस्था को भी सम्मान देते हैं . विष्णु-शिव-ब्रह्मा तथा देवताओं का अस्तित्व है ये मेरा अनुभूत सत्य है . अतः इन सबके प्रति सम्मानजनक होकर के हमें भक्ति का विकास करना है . " जब भी पूजा भाव उमड़ा पूंछ मत आराध्य कैसा , मृत्तिका के पिंड से कह दे तू भगवान बन जा , जानकार अनजान बन जा . "
एक टोटल दृष्टि लेकर के हमको चलना है . एक totality में हमें जीना है . गोविन्द हमारे परम जीवन का केन्द्र है : हम गोविन्द की दिशा में बढ़ रहे हैं , पहले गोविन्द का ज्ञान हासिल कर रहे हैं , फिर उसके डिफरेंट आयाम भी जान रहे हैं , और साथ-साथ हम सुमिरन के द्वारा उसके प्रेम की ओर भी बढ़ते जा रहे हैं .
एक बड़ी मजेदार बात है कि पुराने संतों ने केवल निर्गुण को ही स्थापित किया . तुलसी दास जी ने भी दोनों को मूल्य दिया , पर सगुण को ज्यादा मूल्य दे दिया . ओशो ने निर्गुण और सगुण का समन्वय फिर से किया लेकिन निर्गुण को ज्यादा मूल्य दे दिया . और बात बदल गई . कबीरदास , नानकदेव आदि संतों ने निर्गुण को पूरा मूल्य दिया सगुण को छोड़ ही दिया . तो दृष्टि अधूरी रही . रामानंद जी ने दोनों को मूल्य दिया . वे पूर्ण थे . हमें फिर वही भूल नहीं करनी है . हमें दोनों को साथ लेकर चलना है . एक सर्वांगीण दृष्टि लेकर चलनी है .
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