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    सिद्धार्थ उपनिषद Page 146

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    (429)

    परमात्मा ने हमें पूरी स्वतंत्रता दी है कि हम हीरो का पाठ करेंगे कि विलेन का पाठ करेंगे . यहां अवसर भी दिया है .लेकिन हम उस अवसर का उपयोग नहीं करते हैं . शिवलोक में हम प्रामिस करके आते हैं कि यहां प्रेमपूर्वक रहेंगे , इस बार प्रेम का पाठ सीखेंगे . और यहां आकार झगड़ा करते हैं . पति-पत्नी वहां कहते हैं इस बार चलेंगे तो हम लोग खूब प्रेम करेंगे . पर यहां आकार फिर वही महाभारत शुरू कर देते हैं .
       
    भोजपुरी का कवी कहता है -- " ऐसे तो बहुतेबा प्रेम की चर्चा , प्रेमवा गईल छितराए . प्रेम बटोरे-बटोरे वाला के बा . " मनुष्य की सबसे बड़ी गरिमा ये है कि हम स्वतंत्र हैं , कुछ करने के लिए , और सबसे बड़ा अभिशाप भी यही है . मनुष्य का कितना सम्मान ! परमात्मा ने किया है , पर हम अपनी स्वतंत्रता का दुरूपयोग करते हैं .

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    इस पूरे अस्तित्व का थोड़ा सा हिस्सा सृष्टि है . उसका थोड़ा सा हिस्सा हमारी पृथ्वी है : जहां जीवन है . और उस पर थोड़ा सा मनुष्य . पर नाद केवल मनुष्य सुन सकता है , बाक़ी की क्षमता ही नहीं है . आत्मा के प्रति केवल मनुष्य जाग सकता है . ये जो सतत नाद बज रहा है ये परमात्मा का निमंत्रण है , कि कहां हो ? तुम कब आओगे ? नाद बजा कर परमात्मा पुकार रहा है . हम अनामंत्रित नहीं हैं उसकी सृष्टि में , वो प्रतिपल हमें आमंत्रित कर रहा है . अब कहो कि परमात्मा गर्दन पकड़ कर खुद ही क्यों नहीं बुला लेता ? अगर ऐसा है फिर तो यह सम्मान नहीं हुआ , स्वतंत्रता नहीं हुई .


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