सिद्धार्थ उपनिषद Page 146
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परमात्मा ने हमें पूरी स्वतंत्रता दी है कि हम हीरो का पाठ करेंगे कि विलेन का पाठ करेंगे . यहां अवसर भी दिया है .लेकिन हम उस अवसर का उपयोग नहीं करते हैं . शिवलोक में हम प्रामिस करके आते हैं कि यहां प्रेमपूर्वक रहेंगे , इस बार प्रेम का पाठ सीखेंगे . और यहां आकार झगड़ा करते हैं . पति-पत्नी वहां कहते हैं इस बार चलेंगे तो हम लोग खूब प्रेम करेंगे . पर यहां आकार फिर वही महाभारत शुरू कर देते हैं .भोजपुरी का कवी कहता है -- " ऐसे तो बहुतेबा प्रेम की चर्चा , प्रेमवा गईल छितराए . प्रेम बटोरे-बटोरे वाला के बा . " मनुष्य की सबसे बड़ी गरिमा ये है कि हम स्वतंत्र हैं , कुछ करने के लिए , और सबसे बड़ा अभिशाप भी यही है . मनुष्य का कितना सम्मान ! परमात्मा ने किया है , पर हम अपनी स्वतंत्रता का दुरूपयोग करते हैं .