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    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 93

     [ " अपने वर्तमान रूप का कोई भी अंग असीमित रूप से विस्तृत जानो . " ]


    एक दूसरे द्वार से यह वही विधि है . मौलिक सार तो वही है कि सीमाओं को गिरा दो . मन सीमाएं खड़ी करता है . यदि तुम सोचो मत तो तुम असीम में गति कर जाते हो . या , एक दूसरे द्वार से , तुम असीम के साथ प्रयोग कर सकते हो और मन के पार हो जाओगे . मन असीम के साथ , अपरिभाषित , अनादि , अनंत के साथ नहीं रह सकता .  इसलिए यदि तुम सीमा-रहित के साथ कोई प्रयोग करो तो मन मिट जाएगा . यह विधि कहती है , ' अपने वर्तमान रूप का कोई भी अंग असीमित रूप से विस्तृत जानो .' कोई भी अंग . तुम बस अपनी आंखें बंद कर ले सकते हो और सोच सकते हो कि तुम्हारा सिर असीम हो गया है . अब उसकी कोई सीमाएं न रहीं . तुम्हारा सिर पूरा ब्रह्मांड बन गया है , सीमाहीन .
          यदि तुम इसकी कल्पना कर सको तो विचार अचानक रुक जाएंगे . यदि तुम अपने सिर की असीम रूप में कल्पना कर सको तो विचार नहीं रहेंगे . विचार केवल एक बहुत संकीर्ण मन में हो सकते हैं . मन जितना संकीर्ण हो , उतना ही विचार करने  लिए बेहतर है . जितना ही विशाल मन हो , उतने ही कम विचार होते हैं ; जब मन पूर्ण आकाश बन जाता है तो विचार बिलकुल नहीं रहते .       


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