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    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 80

    [ "कामना के पहले और जानने के पहले  मैं कैसे कह सकता हूं कि मैं हूं ? विमर्श करो . सौंदर्य में विलीन हो जाओ ." ]


    एक कामना पैदा होती है और कामना के साथ यह भाव पैदा होता है कि मैं हूं . एक विचार उठता है और विचार के साथ यह भाव उठता है कि मैं हूं . इसे अपने अनुभव में ही देखो ; कामना के पहले और जानने के पहले अहंकार नहीं है . मौन बैठो और भीतर देखो . एक विचार उठता है और तुम उस विचार के साथ तादात्म्य कर लेते हो . एक कामना पैदा होती है और तुम उस कामना के साथ तादात्म्य कर लेते हो . तादात्म्य में तुम अहंकार बन जाते हो . फिर जरा सोचो : कोई कामना नहीं है ,कोई ज्ञान नहीं है , कोई विचार नहीं है-- तुम्हारा किसी के साथ तादात्म्य नहीं हो सकता . अहंकार खड़ा नहीं हो सकता . पहले देखो , मन ही मन में कामना के उठने को देखो . और जब तुम देखने में निष्णात हो जाओ तब जोर से कहने की जरुरत नहीं है , तब मन ही मन देखो कि एक कामना पैदा हुई है . एक सुंदर स्त्री गुजरती है और कामवासना उठती है ; उसे मन ही मन ऐसे देखो  जैसे कि तुम्हें उससे कुछ लेना-देना नहीं है , तुम सिर्फ घटित होने वाले तथ्य को देख भर रहे हो . और तुम अचानक अनुभव करोगे कि मैं इससे बाहर हूं


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