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    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 79

    [ "अनुभव करो : मेरा विचार , मैं-पन , आंतरिक इन्द्रियां-- मुझ ." ]  


    यह बहुत ही सरल और बहुत ही सुंदर विधि है .


    हम अपनी बाह्य इन्द्रियों को जानते हैं . हाथ से मैं तुम्हें छूता हूं , आंख से देखता हूं : ये बाह्य इन्द्रियां हैं . आंतरिक इन्द्रियां वे हैं जिनसे मैं अपने होने को , अपने अस्तित्व को अनुभव करता हूं . बाह्य इन्द्रियां दूसरों के लिए हैं ; मै बाह्य इन्द्रियों के द्वारा तुम्हारे संबंध में जानता हूं . लेकिन मैं अपने बारे में कैसे जानता हूं ? मैं हूं , यह भी मैं कैसे जानता हूं ? मुझे मेरे होने की अनुभूति ,होने की प्रतीति , होने का अहसास कौन देता है ? उसके लिए आंतरिक इन्द्रियां हैं . जब विचार ठहर जाते हैं और जब मैं-पन नहीं बचता है तो उस शुद्धता में , उस स्वच्छता में , उस स्पष्टता में तुम आंतरिक इन्द्रियों को देख सकते हो . चैतन्य , प्रतिभा , मेधा-- ये आंतरिक इन्द्रियां हैं . उनके द्वारा हमें अपने होने का , अपने अस्तित्व का बोध होता है . यही कारण है कि अगर तुम अपनी आंखें बंद कर लो तो तुम अपने शरीर को बिलकुल भूल सकते हो , लेकिन तुम्हें यह भाव कि मैं हूं बना ही रहेगा .   


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