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    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 57

    ["तीव्र कामना की मनोदशा में अनुद्विग्न रहो ."]


    तुम्हें कुछ प्रयोगों से गुजरना होगा तो ही तुम इस विधि का अभिप्राय समझ सकते हो . तुम क्रोध में हो ; क्रोध ने तुम्हें पकड़ लिया है .  तुम अस्थाई रूप से पागल हो , आविष्ट हो , अवश हो . तुम होश में नहीं हो . इस अवस्था में अचानक स्मरण करो कि अनुद्विग्न रहना है-- मानो तुम कपड़े उतार रहे हो , नग्न हो रहे हो . भीतर नग्न हो जाओ , क्रोध से निर्वस्त्र हो जाओ . क्रोध तो रहेगा , लेकिन अब तुम्हारे भीतर एक बिंदु है जो अनुद्विग्न है , शांत है . तुम्हें पता होगा कि क्रोध परिधि पर है ; बुखार की तरह वह वहां है . परिधि कांप रही है ; परिधि अशांत है . लेकिन तुम उसके दृष्टा हो सकते हो . और यदि तुम उसके दृष्टा हो सके तो तुम अनुद्विग्न रहोगे . तुम उसके साक्षी हो जाओ , और तुम शांत हो जाओगे . यह शांत बिंदु ही तुम्हारा मूलभूत मन है .
            किसी आईने के सामने खड़े हो जाओ और अपने क्रोध को प्रकट करो-- और उसके साक्षी बने रहो . तुम अकेले हो , इसलिए तुम उस पर ध्यान कर सकते हो . तुम जो भी करना चाहो करो , लेकिन शून्य में करो . अगर तुम किसी को मारना-पीटना चाहते हो तो खाली आकाश के साथ मार-पीट करो .  अगर क्रोध करना चाहते हो तो क्रोध करो ; अगर चीखना चाहते हो तो चीखो . लेकिन सब अकेले में करो . और अपने को उस  केन्द्र-बिंदु की भांति स्मरण रखो  जो यह सब नाटक देख रहा है . तब यह एक साइकोड्रामा बन जाएगा और तुम उस पर हंस सकते हो . वह तुम्हारे लिए गहरा रेचन बन जाएगा . और न केवल तुम्हारा क्रोध विसर्जित हो जायेगा , बल्कि तुम उससे कुछ फायदा उठा लोगे . तुम्हें एक प्रौढता प्राप्त होगी ; तुम एक विकास को उपलब्ध होओगे . और अब तुम्हें पता होगा कि जब तुम क्रोध में भी थे तो कोई केन्द्र था जो शांत था . अब इस केन्द्र को अधिकाधिक उघाड़ते जाओ . और वासना की अवस्था में इस केन्द्र को उघाड़ना आसान है .
      यह विधि बहुत उपयोगी हो सकती है और इससे तुम्हें बहुत लाभ हो सकता है . लेकिन यह कठिन होगा . क्योंकि जब तुम अशांत होते हो तो तुम सब कुछ भूल जाते हो  . तुम यह भूल जा सकते हो कि मुझे ध्यान करना है . तो फिर इसे इस भांति प्रयोग करो . उस क्षण के लिए मत रुको जब तुम्हें क्रोध होता है . उस क्षण के लिए मत रुको . अपना कमरा बंद करो और क्रोध के किसी अतीत अनुभव को स्मरण करो जिसमें तुम पागल ही हो गए थे . उसे स्मरण करो और फिर से उसका अभिनय करो .
        लेकिन स्मरण ही मत करो ,उसे फिर से जीयो . अनुभव को फिर जीना शुरू करो और मन उसे पकड़ लेगा . वह घटना वापस लौट आएगी और तुम उसे फिर जीओगे . और उसे पुनः जीते हुए अनुद्विग्न रहो , शांत रहो . अतीत से शुरू करो . और यह सरल है , क्योंकि अब यह नाटक है . यह यथार्थ स्थिति नहीं है . और अगर तुम यह करने में समर्थ हो गए तो जब सच ही क्रोध की स्थिति पैदा होगी , तुम उसे भी कर सकोगे . और यह प्रत्येक कामना के साथ किया जा सकता है ; प्रत्येक कामना के साथ किया जाना चाहिए .
      अतीत के अनुभवों को फिर से जीना बड़े काम का है . हम सब के मन में घाव हैं जो अभी भी हरे हैं . अगर तुम उन्हें फिर से जी लोगे तो तुम निर्भार हो जाओगे . अगर तुम अपने अतीत में लौट सके और अधूरे अनुभवों को जी सके तो तुम अपने अतीत के बोझ से मुक्त हो जाओगे . तुम्हारा मन ताज़ा हो जाएगा ; धूल झड़ जायेगी . अपने अतीत में से कोई ऐसा अनुभव स्मरण करो जो तुम्हारे देखे अधूरा पड़ा है . तुम किसी की हत्या करना चाहते थे ; तुम किसी को प्रेम करना चाहते थे ; तुम यह या वह करना चाहते थे . लेकिन वह सारे काम अपूर्ण रह गए , अधूरे रह गए . और वह अधूरी चीज तुम्हारे मन के आकाश पर बादल की भांति मंडराती रहती है . वह तुम्हें और तुम्हारे कृत्यों को सदा प्रभावित करती रहती है . उस बादल को विसर्जित करना होगा . तो उसके कालपथ को पकड़कर मन में पीछे लौटो और उन कामनाओं को फिर से जीयो जो अधूरी रह गई हैं , उन घावों को फिर से जीयो जो अभी भी हरे हैं . वे घाव भर जाएंगे ; तुम स्वस्थ हो जाओगे . और इस प्रयोग के द्वारा तुम्हें एक झलक मिलेगी कि कैसे किसी अशांत स्थिति में शांत रहा जाए .


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