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    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 36

    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 36

    ["किसी विषय को देखो , फिर धीरे-धीरे उससे अपनी दृष्टि हटा लो , और फिर धीरे-धीरे उससे अपने विचार हटा लो . तब !']


    किसी फूल को देखो . लेकिन याद रहे कि इस देखने का अर्थ क्या है ? केवल देखो , विचार मत करो . मुझे यह बार-बार कहने की जरुरत नहीं है . तुम सदा स्मरण रखो कि देखने का अर्थ देखना भर है ; विचार मत करो . अगर तुम सोचते हो तो वह देखना नहीं है ; तब तुमने सब कुछ दूषित कर दिया . यह शुद्ध देखना है ; महज देखना . पहले फूल को देखो , विचार हटाकर देखो . और जब तुम्हें लगे कि मन में कोई विचार नहीं बचा सिर्फ फूल बचा है , तब हलके-हलके अपनी आंखों को फूल से अलग करो .धीरे-धीरे फूल तुम्हारी दृष्टि से ओझल हो जाएगा पर उसका बिम्ब तुम्हारे साथ रहेगा . विषय तुम्हारी दृष्टि से ओझल हो जाएगा , तुम द्रष्टि हटा लोगे . अब बाहरी फूल तो नहीं रहा ; लेकिन उसका प्रतिबिम्ब तुम्हारी चेतना के दर्पण में बना रहेगा . यह एक बहुत बढ़िया ध्यान है . तुम इसे प्रयोग में ला सकते हो . किसी विषय को चुन लो . लेकिन ध्यान रहे कि रोज-रोज वही विषय रहे ,ताकि भीतर एक ही प्रतिबिम्ब बने और एक ही प्रतिबिम्ब  से तुम्हें अपने को अलग करना पड़े .


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