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    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 35

    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 35

    ["जब परम रहस्यमय उपदेश दिया जा रहा हो , उसे श्रवण करो . अविचल , अपलक आँखों से ; अविलम्ब परम मुक्ति को उपलब्ध होओ ."]


    इसका मतलब है कि मन निर्विचार हो , शांत हो . पलक भी नहीं हिले ; क्योंकि पलक का हिलना आंतरिक अशांति का लक्षण है . जरा सी गति भी न हो . केवल कान बन जाओ ; भीतर कोई भी हलचल न रहे . और तुम्हारी चेतना निष्क्रिय , खुली ग्राहक की अवस्था में रहे--गर्भधारण करने की अवस्था में . जब ऐसा होगा , जब वह क्षण आयेगा जिसमें तुम समग्रतः रिक्त होते हो , निर्विचार होते हो , प्रतीक्षा में होते हो--किसी चीज की प्रतीक्षा में नहीं , क्योंकि वह विचार करना होगा , बस प्रतीक्षा में--जब यह अचल क्षण , ठहरा हुआ क्षण घटित होगा , जब सब कुछ ठहर जाता है , समय का प्रवाह बंद हो जाता है और चित्त समग्रतः रिक्त है , तब अ-मन का जन्म होता है . और अ-मन में ही गुरु उपदेश प्रेषित करता है .


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