• Recent

    मुक्ति और उसके साधन


                      हमारे जीवन में धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष नामक ये चार पुर्षार्थ आध्यात्मिक मूल्य रखते हैं. मोक्ष इनमे परम पुरुषार्थ माना  गया है. आत्यंतिक दुखनिवृति और परमानन्द कि प्राप्ति ही मोक्ष है ऐसा अद्वैत वेदान्तिक मानते हैं.यह ब्रह्म की ही स्वरूपभूत स्थिति  है. मोक्ष कोई नवीन प्राप्ति नहीं है यह तो आत्मा का स्वरूप है. हम अपने स्वरुप को जब जान लेते हैं तो यही मोक्ष कहलाता है. जीव अपने अज्ञान के आवरण के कारण ब्रह्मस्वरूप को नहीं जान पा रहा है और भावापन्न हो कर सुखी दुखी हो रहा है. जब ब्रह्मविश्यक ज्ञान से अज्ञान की निवृति हो जाती है तो वह अपने स्वरुपभूत स्थिति में आसीन हो जाता है. मोक्ष एक नित्यासिद्धि अवस्था का नाम है यह उत्पाद्य अर्थात उत्पन्न होना और विकार्य अर्थात नष्ट होने जैसी चीज नहीं है और न ही यह स्नास्कार्य अर्थात संस्कार है. यह अनित्य है.

    अविद्या के कारण जीवत्व है और अविद्या की  निवृति से ही जीवत्वभाव का बाध हो कर शिवत्व अर्थात ब्रह्मस्वरूप कि प्राप्ति होती है.अविद्या का बंधन मिथ्या है और इस अविद्याबंधन के विघूनन से मोक्ष की  प्राप्ति होती है. यह किस प्रकार संभव है.? तत्वमसि आदि  ब्रह्मविश्यक वाक्यों से सम्यक ज्ञान की उत्पत्ति हो जाती है उसी समय सम्पूर्ण कार्य सहित अविद्या का बाध हो जाता है और जीव अपने स्वरुप ब्रह्म में स्थित हो जाता है. यही मुक्ति है यही परम पुरुषार्थ है.

     इस मुक्ति की दो अवस्थाएं है --जीवन्मुक्ति और विदेह्मुक्ति. ज्ञान होते ही शरीर का पात नहीं होता. अविद्याबंधन तो विदूरित  हो जाता है परन्तु प्रारब्ध कर्मो के कारण शरीर क्रिया बनी रहती है इस प्रकार ब्रह्म विषयक ज्ञान द्वारा अज्ञान का नाश हो चुकने पर प्रारब्ध कर्मों के शेष होने तक जीवित रहना ही जीवन्मुक्ति है और प्रारब्ध कर्मों का भोग समाप्त हो जाने पर जब शरीर का पात हो जाता है तब उस स्थिति को विदेह्मुक्ति कहते हैं.

     इस मुक्ति का साधन एकमात्र ज्ञान है. ब्रह्म विषयक ज्ञान ही ब्रह्म विषयक अज्ञान का निवर्तक होगा.अतः ब्रह्मज्ञान से ही अविद्या की निवृति होगी.यद्यपि "तत्वमसि", "अहं ब्रह्मास्मि " आदि वेदांत वाक्यों के श्रवण से ही साक्षात्कार ज्ञान का उदय होता है.फिर भी साधन-चतुष्टय संपन्न हो कर श्रवण-मनन -निदिध्यासन नहीं किया जाता तब तक साक्षात्कार वृति का उदय नहीं हो पाता. इसलिए साधन चतुष्टय से संपन्न होना जरूरी है. वे इस प्रकार है -- नित्यानित्य वस्तु विवेक ,इहमुत्रफल्भोग विराग ,श्मादिष्ट्कसंपत्ति,और मुमुक्षत्व .ब्रह्मवस्तु ही नित्य है अन्य सभी अनित्य है ,इस प्रकार विवेक ही नित्यानित्य विवेक है .सभी के प्रति वैराग्य की भावना ही विराग है. शम,दम ,उपरति तितिक्षा, समाधान और श्रद्धा -ये षटसंपत्ति है, मुक्ति की इच्छा ही मुमुक्षत्व है .

    -ओशो बिपिन -