सिद्धार्थ उपनिषद Page 47
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ब्रह्म मुख्यतः परमचैतन्य निराकार है. कुछ हिस्सा जड़ आकार है. बहुत ही कम हिस्सा चेतन या जीव है. लेकिन तीनों महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इन तीनों से ही सृष्टि का खेल चल रहा है.
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आत्मा का बहिर्मुखी विस्तार जो मस्तिष्क के माध्यम से कार्य करता है, चेतना है, मन है, बुद्धि है. चेतना का अंतर्मुखी विस्तार जो बिना मस्तिष्क के कार्य करता है, आत्मा है. निर्मल, निस्तरंग चेतना या मन ही आत्मा है. तरंगित आत्मा ही चेतना या मन है. आत्मा का विराट रूप परमात्मा है.
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आत्मा परमात्मा से कभी अलग नहीं होती और उसी से निरंतर अनुप्राणित होती रहती है. आत्मा के तल पर जाकर ही परमात्मा को जाना जा सकता है.
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जीव में पांच तत्व एवं आत्मा होती है. मृत्यु के बाद सूक्ष्म शरीर भौतिक शरीर से बाहर निकलता है. सूक्ष्म शरीर में आकाश तत्व, सूक्ष्म मस्तिष्क, सूक्ष्म चेतना और आत्मा होती है. आत्मा तब भी परमात्मा से निरंतर जुडी रहती है और निरंतर ऊर्जायित होती रहती है.
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किसी बल्ब के उदाहरण से समझना चाहें, तो कह सकते हैं कि परमात्मा विद्युत की तरह है, आत्मा प्रकाश की तरह है और शरीर बल्ब के फिलामेंट एवं कांच की तरह है.
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किसी वृक्ष के उदाहरण से समझना चाहें, तो कह सकते हैं कि धड़ शरीर एवं चेतना की तरह, जड़ आत्मा की तरह और पृथ्वी परमात्मा की तरह है.