सिद्धार्थ उपनिषद Page 24
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यह बड़े आश्चर्य की बात है कि भारत के महापुरुषों में बहुधा कबीर की गिनती नहीं होती. एक गीतकार ने उपकार फिल्म में यह साहस किया और लिखा -'रंग अमन कबीर जवाहर से.' फिल्म में ऐसा गाया भी गया . लेकिन फ़िल्मी गीतों की किताबों में पाठ बदल दिया गया -'रंग अमन का वीर जवाहर से.'इस देश में राजनेताओं की प्रतिमाएं खड़ी की जाती हैं और संतों की जन्म शताब्दी पर उनके नाम पर डाक टिकट निकाल कर हम अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं. यह सोंच बदलनी चाहिए. भारत की असली पहचान संत हैं, राजनेता नहीं. वस्तुतः कबीर भारत ही नहीं, बल्कि सारे विश्व के अनमोल रत्न हैं. कबीर का सम्मान संतों का सम्मान है. कबीर का सम्मान भारत का सम्मान है.
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नवंबर, २०११ में अंडमान जाने का अवसर मिला. हिंद महासागर का यह हिस्सा निर्मल है. जल कहीं नीला है, कहीं हरा, कहीं स्याह. द्वीप घने जंगलों से आच्छादित हैं. ग्लास बोट (ऐसी नाव जिसकी पेंदी में लेंस लगा रहता है) में बैठकर समुद्र की तलहटी में कोरल और नाना प्रकार की मछलियों का दीदार एक अद्भुत अनुभव है. वैसे स्नूकिंग और डाइविंग द्वारा भी नीचे देखा जा सकता है, लेकिन ग्लास बोट से झांककर देखना सर्वोत्तम अनुभव है. समुद्र के भीतर इतनी खूबसूरत रचना है, यह मेरे लिए बिलकुल कल्पनातीत अनुभव था. यह भीतर के अंतराकाश जैसा था. प्रत्येक साधक को यह अनुभव प्राप्त करना चाहिए, ताकि वे देख सकें कि समुद्र के ऊपरी हिस्से में लहरें है, लेकिंन गहराई में निर्मल शान्ति है. ऐसे ही हमारी चेतना ऊपर अशांत है, लेकिन ध्यान, सुमिरन एवं समाधि द्वारा अपने भीतर गहराई में जाने पर एक अद्भुत शान्ति एवं आनंद का अनुभव होता है. जिसने वह गहराई नहीं जानी, वह इस जीवन के परम खजाने से चूक गया. यूरोप की यात्रा पर मेरे साथ ही गई एक साधिका से मैंने पूंछा कि अंडमान यात्रा तुम्हें कैसी लगी ? उसने बहुत ही सहजता से कहा -'यूरोप में आदमी द्वारा बनाई आलीशान इमारतें देखकर आँखें चौंधियां गई, मगर अंडमान में समुद्र के भीतर परमात्मा द्वारा बनाई सुन्दर इमारतों को देखकर आत्मा तृप्त हो गई .'