सिद्धार्थ उपनिषद Page 22
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कर्म के लए उद्देश्य जरुरी है. बिना उद्देश्य या लक्ष्य के कर्म असंम्भव है. क्या मंजिल ध्यान में रखे बिना यात्रा हो सकती है ? क्या आत्मज्ञान, ब्रह्मज्ञान, आनंद, प्रभु की खोज, मोक्ष , समाधी आदि लक्ष्य हुए बिना आध्यात्मिक यात्रा संम्भव है ?
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आनंद और शान्ति दोनों का स्रोत निराकार है. लेकिन आनंद सह्स्रत्रार पर महसूस होता है, जबकि शान्ति नाभि चक्र पर . आनंद आती साँसों के साथ महसूस होता है, जबकि शान्ति जाती साँसों के साथ. आनंद तृप्ति का अनुभव है, जबकि शान्ति निष्कामता का.
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मुक्ति और परमपद में क्या अंतर है ? मुक्ति आप्तकाम हो जाना है, निष्काम हो जाना है, बुभुत्सा (भोग की ईच्छा) से मुक्त हो जाना है, कामना से मुक्त हो जाना है, ममता से मुक्त हो जाना है, जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाना है. मुक्ति आत्मा के आकाश में विश्राम है. मुक्ति परमानंद का अनुभव है. परमपद ममता और हमता, मेरापन और मैंपन, अतीत और भविष्य दोनों से मुक्त हो जाना है. परमपद परमात्मा के आकाश में परम विश्राम है. ब्रह्मपद मंगलब्रह्म का अनुभव है. गोविन्द्पद विष्णुलोक में निवास है. परमपद गोविन्द का चाकर हो जाना है. गोविन्द्पद संतलोक में वास है.
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भारत के लिए चतुर्युग की धारणा आत्मघाती सिद्ध हुई है. भारत की पूरी सोच उन्नति से अवनति की है. इस सोच ने हमें एक हजार साल तक गुलाम रखा. अब यह सोच बदलनी चाहिए. क्या सतयुग में साईकिल थी ? क्या त्रेता में बन्दूक थी ? क्या द्वापर में हवाई जहाज था ? हकीकत तो यह है कि विज्ञान में ही नहीं, धर्म में भी हम निरंतर आगे बढ़ रहे हैं. वेद से आगे उपनिषद जाते हैं. उपनिषद के आगे कृष्ण जाते हैं. कृष्ण के आगे बुद्ध जाते हैं. बुद्ध के आगे पतंजलि जाते हैं. पतंजलि के आगे गोरखनाथ जाते हैं.गोरख के आगे कबीर जाते हैं. कबीर के आगे ओशो जाते हैं. ओशो के आगे ओशोधारा जा रही है.