सिद्धार्थ उपनिषद Page 21
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गुरु और शिक्षक में बड़ा भेद है. शिक्षक हमें वह देता है, जो हमारे पास नहीं है. गुरु वह देता है, जो हमारे पास है, मगर उसका बोध नहीं है. गुरु के बिना जीवन पतझड़ है. गुरु के साथ हमारे जीवन में बसंत आता है.
गुरु के बिना हमारा जीवन अन्धकार है. गुरु हमारे जीवन में चांदनी की सौगात लाता है. गुरु जलता हुआ आत्मदीप है. उसके सानिंध्य में हमारा आत्मदीप भी जल उठता है.
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अभी और यहीं, now and here में जीना साक्षी है. here स्टिल फोटोग्राफ की तरह है. now वीडियोफिल्म की तरह है. दूसरे शब्दों में बहता हुआ here now है और ठहरा हुआ now here है.
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केवल आकार में सौन्दर्य है कहाँ ? सारा सौंदर्य आकाश के कारण है. ग्रीन हाउस के अंदर खिले फूल कहाँ सुंदर लगते हैं ? लेकिन जब वही फूल खुले खेतों में खिलते हैं, तो कितने अच्छे लगते हैं ? जिन वृक्षों से आकाश नहीं झांकता , उनमें वह सौंदर्य कहाँ होता, जो उन वृक्षों में दिखता है, जिनकी डालियाँ और पत्तों से आकाश झाँक रहा होता है ?
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गुरु और पूरा गुरु में क्या भेद है ? गुरु परमात्मा की प्यास पैदा करता है. पूरा गुरु प्यास पैदा भी करता है, और बुझाता भी है. मगर शास्त्रों से नहीं, अनुभव से. जो शास्त्रों से प्यास बुझाने की कोशिश करता है, वह तो शिक्षक है, पूरा गुरु नहीं.