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    परमात्मा है-अभी और यहीं - ओशो

      

    God-is-now-and-here-Osho

    प्यारी जयति, 

        प्रेम। 

                    परमात्मा दूर है; क्योंकि निकट में हमें देखना नहीं आता है। अन्यथा, उससे निकट और कोई भी नहीं है। वह निकटतम ही नहीं वरन निकटता का ही दूसरा नाम है। और वह दूसरा नाम भी उनके लिए ही खोजना पड़ा है, जो कि निकट में देख ही नह सकते हैं। शब्द, नाम, सिद्धांत, शास्त्र, धर्म, दर्शन-सब उन्हीं के लिए खोजने पड़े हैं जो कि केवल देर ही देख सकते हैं। और, इसलिए उनका परमात्मा से कोई भी संबंध नहीं है। उनका संबंध केवल निकट के प्रति जो अंधे हैं बस उनसे ही है।

                 इसलिए, मैं कहता हूं : दूर को छोड़ो-आकाश के स्वर्गों को छोड़ो। भविष्य के मोक्षों को छोड़ी और देखो निकट को-काल में भी, अवकाश में भी-अभी और यहीं-देखो। काल के क्षण में देखा। अवकाश के कण में देखो। काल के क्षण (पउम-ऊवउमदज) में काल मिट जाता है। अवकाश के कण (एचवम एजवउ) में क्षेत्र मिट जाता है। अभी और यहीं (भमतम दक छवू) में क्षेत्र मिट जाता है। अभी और यहीं (भमतमदक छवू) में न समय है, न क्षेत्र है। फिर जो शेष रह जाता है, वही है सत्य-वही है प्रभु-वही है। फिर जो शेष रह जाता है, वही है सत्य-वही है प्रभु-वही है। वही तुम भी हो। “तत्वमसि श्वेतकेत" 

    रजनीश के प्रणाम 

    २६-११७१९७० पुनश्च : डा. को प्रेम। दोनों के पत्र मिल गए हैं। चित्र भी मिल गए। प्रति : सुश्री जयति शुक्ल, द्वारा-डा. हेमत शुक्ल, काठियावाड, जूनागढ़, गुजरात


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