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    जो मनुष्य सृजन करता है, वही मनुष्य शांति को और आनंद को उपलब्ध होता है - ओशो

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    जो मनुष्य सृजन करता है, वही मनुष्य शांति को और आनंद को उपलब्ध होता है - ओशो 

              मैं आपसे यह कहना चाहता हूं, जीवन में जो भी जोड़ता है, वह आनंद को उपलब्ध होता है। जो भी क्रिएट करता है, जो भी सृजन करता है, जो भी बनाता है, वह आनंद को उपलब्ध होता है। अगर आप दुखी हैं तो उसका अर्थ है, आपने केवल तोडना सीखा होगा, जोड़ना नहीं। अगर आप दुखी हैं तो आपने मिटाना सीखा होगा, बनाना नहीं। आपने जीवन में कुछ बनाया, कुछ सृजन किया, कुछ क्रिएट किया? आपके जीवन से कुछ निर्मित हुआ? कुछ सृजित हुआ, कुछ बना, कुछ पैदा हुआ? को ई एक गीत, जो आपके मरने के बाद भी गाया जा सके. कोई एक मूर्ती जो आप के बाद भी स्मृति बनी रहे, कोई एक पौधा, जो आपके न होने के बाद भी छाया दे ? आपने कुछ बनाया, कुछ निर्मित किया? जो आपसे बड़ा हो, जो आप मिट जाएं और रहे, जो आप न हों और फिर भी हो। जो मनुष्य सृजन करता है, वही मनुष्य शांति को और आनंद को उपलब्ध होता है। जिसके जीवन में जितनी सृजनात्मकता,

              जितनी क्रिएटिविटी होती है. उसके जीवन में उतनी ही शांति और उतना ही आनं द होता है। जो लोग केवल मिटाते और तोड़ते हैं, वे आनंदित नहीं हो सकते। क्यों सूजन करने से मनुष्य को आनंद उपलब्ध होता है? जो व्यक्ति जितने दर तक सृजन करता है, वह उतने दूर तक ईश्वर का भागीदार हो जाता है। ईश्वर है सृष्टा , और जब भी हम कुछ सृजन करते हैं, ईश्वर का एक अंश हमसे काम करने लग ता है और जो व्यक्ति सारे जीवन को सृजनात्मक बना देता है, सारे जीवन को एक सृजनात्मक सेवा में समर्पित कर देता है, उसके जीवन में संपूर्ण रूप से ईश्वर प्रकट होने लगता है। उसका जीवन आनंद से प्रेम से भर जाता है।

    - ओशो 

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