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    तथाकथित धर्म ने मनुष्य को उदास, चिंतित और दुखी किया है - ओशो

    तथाकथित धर्म ने मनुष्य को उदास, चिंतित और दुखी किया है - ओशो


    तथाकथित धर्म ने मनुष्य को उदास, चिंतित और दुखी किया है - ओशो 

              एक राजकुमार था बचपन से ही सुन रहा था कि पृथ्वी पर एक ऐसा नगर भी है ज हां कि सभी लोग धार्मिक हैं। बहुत बार उस धर्म नगर की चर्चा , बहुत बार उस ध म नगर की प्रशंसा उसके कानों में पड़ी थी। जब वह युवा हुआ और राजगद्दी का म लिक बना तो सबसे पहला काम उसने यही किया कि कुछ मित्रों को लेकर, यह उ स धर्म नगरी की खोज में निकल पड़ा। उसकी बड़ी आकांक्षा थी, उस नगर को देख लेने की, जहां कि सभी लोग धार्मिक हो।

              बड़ा असंभव मालूम पड़ता था यह बहुत दिन की खोज, बहुत दिन की यात्रा के बाद, वह एक नगर में पहुंचा, जो बड़ा अनू ठा था। नगर में प्रवेश करते ही उसे दिखायी पड़े ऐसे लोग, जिन्हें देखकर क चकि त हो गया और उसे विश्वास भी न आया कि ऐसे लोग भी कहीं हो सकते हैं। उस नगर का एक खास नियम था, उसके ही परिणाम स्वरूप यह सारे लोग अपंग हो ग ए हैं। देखो, द्वार पर लिखा है, कि अगर तेरा बांया हाथ पाप करने को संलग्न हो तो उचित है कि तू अपना बाया हाथ काट देना, बजाय कि पाप करे। देखो, लिखा है, द्वार पर कि अगर तेरी एक आंख तुझे गलत मार्ग पर ले जाए तो अच्छा है कि उसे तू निकाल फेंकना, बजाय इसके कि तू गलत रास्ते पर जाए।

              इन्हीं वचनों का पालन करके यह गांव अपंग हो गया है। छोटे-छोटे बच्चे, जो अभी द्वार पर लिखे इ न अक्षरों को नहीं पढ़ सकते हैं, उन्हें छोड़ दें तो इस नगर में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो धर्म का पालन करता हो और अपंग न हो गया हो। वह राजकुमार उस द्वार के भीतर प्रविष्ट नहीं हुआ, क्योकि वह छोटा बच्चा नहीं थ [ और द्वार पर लिखे अक्षरों को पढ़ सकता था। उसने घोड़े वापस कर लिए और उ सने अपने मित्रों को कहा, हम वापस लौट चलें, अपने अधर्म के नगरों को, कम से कम आदमी वहां पूरा तो है!

              इस कहानी से इसलिए मैं अपनी बात शुरू करना चाहता हूं कि सारी जमीन पर ध मों के तथाकथित रूप ने आदमी को अपंग किया है। उसके जीवन को स्वस्थ और पू र्ण नहीं बनाया बल्कि उसके जीवन को खंडित, उसके जीवन को अवस्था, पंगु और कुंठित किया है। उसके परिणाम स्वरूप सारी दुनिया में, जिनके भीतर भी थोड़ा वि चार है, जिनके भीतर भी थोड़ा विवेक है, जो थोड़ा सोचते हैं और समझते हैं, उन सब के मन में धर्म के प्रति एक विद्रोह की तीव्र भावना पैदा हुई है। यह स्वाभावि क भी है कि यह भावना पैदा हो। क्योकि धर्म ने, तथाकथित धर्म ने जो कुछ किया है, उससे मनुष्य आनंद को तो उपलब्ध नहीं हुआ, वरन उदास, और चिंतित और दुखी हो गया है।

    - ओशो 

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