सिद्धार्थ उपनिषद Page 177
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ज्ञानी, भक्त एवं संत में क्या अंतर है? ज्ञानी आत्म स्मरण में जीता है. भक्त हरि स्मरण में जीता है. संत आत्म स्मरण और हरि स्मरण दोनों में जीता है.(478)
परमात्मा को मंगलमय जानते हुए स्वधर्म का पालन करो.स्वधर्म का अर्थ है प्रयास एवं प्रार्थना. वर्तमान चुनौतियों में तुम जो भी कृत्य कर सकते हो, करो, जो भी प्रार्थना कर सकते हो , करो, यही स्वधर्म है.
परमात्मा को मंगलमय जानने का अर्थ है कि फिर जो भी होगा, अच्छा होगा, ऐसे समर्पण भाव से भरो.
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आनंद, प्रेम एवं उत्सव क्या है?स्वयं के सानिंध्य का मज़ा आनंद है. किसी अन्य के सानिंध्य का मज़ा प्रेम है. सहप्रेमियों के सानिंध्य का मज़ा उसव है.
भविष्य में मज़े की आशा उमंग है. वर्तमान में मज़ा का अनुभव आनंद है.
परमात्मा "एक" है का अर्थ है कि उसके सिवा और भी बहत कुछ है.
परमात्मा "अद्वैत" है का अर्थ है कि उसके सिवा और कुछ भी नहीं है.
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