सिद्धार्थ उपनिषद Page 175
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अहोभाव के साथ किसी को कुछ देने का एवं उसके सान्निद्ध्य का मजा लेने का भाव प्रेम है. प्रेम के तीन सोपान हैं- प्रेम, श्रद्धा एवं भक्ति.प्रेम बर्फ की तरह है, अर्थात इसमें अपना आकार, अपना अहंकार बाकी रहता है.
श्रद्धा पानी की तरह है, यह अपना आकार, अपना अहंकार खो देता है, लेकिन गुरु के वजूद को अपना वजूद मान लेता है.
भक्ति भाप की तरह है. भक्त मिट जाता है, परमात्मा की लय पर जीने लगता है.
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धर्म क्या है? धर्म है मंगल पथ पर चलना. भगवान महावीर कहते हैं-"धम्मो मंगल मुक्किठम, अहिंसा संजमो, तवो." अर्थात जो मंगल की ओर प्रेरित करे, वह धर्म है. अहिंसा, संयम एवं तप धर्म के तीन सोपान हैं.(474)
मंगल क्या है? अहोभाव के साथ सदभाव का मज़ा लेना मंगल है. भगवान बुद्ध कहते थे कि जो भी मार्ग में मिले, उसकी मंगल कामना करो. इससे दूसरे व्यक्ति का मंगल तो बाद में होता है, तुम्हारा मंगल तुरंत हो जाता है. प्रेम में थोड़ी अपेक्षा रह जाती है कि प्रेमी मेरे लिए न सही, अपने लिए तो कुछ करे. लेकिन मंगल में वह भी विदा हो जाती है. इस तरह जब प्रेम शुद्धतम होता है, तो मंगल बन जाता है.(475)
नदी के बहते पानी को देखो. कितनी उमंग देता है. घंटों देखते रहो. उमंग बढ़ती जाती है; तुम्हारी चेतना में जमा होती जाती है. इसी तरह किसी सरोवर या झील को देखो, कितनी शांति मिलती है. बहता पानी उमंग देता है. ठहरा पानी शांति देता है.Page - 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20