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    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 67

    [ "यह जगत परिवर्तन का है , परिवर्तन ही परिवर्तन का . परिवर्तन के द्वारा परिवर्तन को विसर्जित करो ." ]


    पहली बात तो यह समझने की है कि तुम जो भी जानते हो वह परिवर्तन है ; तुम्हारे अतिरिक्त , जानने वाले के अतिरिक्त सब कुछ परिवर्तन है . क्या तुमने कोई ऐसी चीज देखी है जो परिवर्तन न हो , जो परिवर्तन के अधीन न हो . यह सारा संसार परिवर्तन की घटना है .
        सब तरफ परिवर्तन है . यह परिवर्तन पृष्ठभूमि बन जाता है , कंट्रास्ट बन जाता है . और तुम शिथिल होते हो , विश्राम में होते हो , इसलिए तुम्हारे मन में भविष्य नहीं होता , भविष्य के विचार नहीं होते . तुम यहां और अभी होते हो ; यह क्षण ही सब कुछ होता है . सब कुछ बदल रहा है--और अचानक तुम्हें अपने भीतर उस बिंदु का बोध होता है जो कभी नहीं बदलता है .
       'परिवर्तन से परिवर्तन को विसर्जित करो .'
      इसका यही अर्थ है . लड़ो मत . मृत्यु के द्वारा अमृत को जान लो ; मृत्यु के द्वारा मृत्यु को मर जाने दो . उससे लड़ाई मत करो .
      तंत्र की दृष्टि को समझना कठिन है . कारण यह है कि हमारा मन कुछ करना चाहता है , और तंत्र है कुछ न करना . तंत्र कर्म नहीं , पूर्ण विश्राम है . लेकिन यह एक सर्वाधिक गूढ़ रहस्य है . और अगर तुम इसे समझ सको , और अगर तुम्हें इसकी प्रतीति हो जाए , तो तुम्हें किसी अन्य चीज की चिंता लेने की जरुरत न रही . यह अकेली विधि तुम्हें सब कुछ दे सकती है .
      तब तुम्हें कुछ करने की जरुरत न रही , क्योंकि तुमने इस रहस्य को जान लिया कि परिवर्तन से परिवर्तन का अतिक्रमण हो सकता है , मृत्यु से मृत्यु का अतिक्रमण हो सकता है , काम से काम का अतिक्रमण हो सकता है , क्रोध से क्रोध का अतिक्रमण हो सकता है . अब तुम्हें यह कुंजी मिल गई कि जहर से जहर का अतिक्रमण हो सकता है .


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