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    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 64

    ["छींक के आरम्भ में , भय में , चिंता में , खाई-खड्ड के कगार पर , युद्ध से भागने पर , अत्यंत कुतूहल में , भूख के आरंभ में और भूख के अंत में , सतत बोध रखो ."]


    यह विधि देखने में बहुत सरल मालूम पड़ती है : छींक के आरम्भ में , भय में , चिंता में , खाई-खड्ड के कगार पर , युद्ध से भागने पर , अत्यंत कुतूहल में , भूख के आरंभ में और भूख के अंत में , सतत बोध रखो .
       बहुत सी बातें समझने जैसी हैं . छींकने जैसे बहुत सरल कृत्य भी उपाय की तरह काम में लाए जा सकतें हैं . क्योंकि वे कितने ही सरल दिखें , दरअसल वे बहुत जटिल हैं . और जो आंतरिक व्यवस्था है वह बहुत नाज़ुक चीज है . जब भी तुम्हें लगे कि छींक आ रही है , सजग हो जाओ . संभव है कि सजग होने पर छींक न आये , चली जाए . कारण यह है कि छींक गैर-स्वैच्छिक चीज है-- अचेतन , गैर-स्वैच्छिक . तुम स्वेच्छा से , चाह कर नहीं छींक सकते हो , तुम जबरदस्ती नहीं छींक सकते हो . चाह कर कैसे छींक सकते हो ?
       मनुष्य कितना असहाय है ! तुम चाह कर एक छींक भी नहीं ला सकते . एक मामूली सी छींक भी तुम चाह कर नहीं पैदा कर सकते हो . यह गैर-स्वैच्छिक है ; स्वेच्छा की जरूरत नहीं है . यह तुम्हारे मन के कारण नहीं घटित होती है ; यह तुम्हारे समग्र संस्थान से , समग्र शरीर से घटित होती है . और दूसरी बात कि जब तुम छींक के आने के पूर्व सजग हो जाते हो -- तुम उसे ला नहीं सकते ; लेकिन वह जब अपने आप ही आ रही हो और तुम सजग हो जाते हो--तो संभव है कि वह न आये . क्योंकि तुम उसकी प्रक्रिया में कुछ नई चीज जोड़ रहे हो . वह खो जा सकती है . लेकिन जब छींक खो जाती है और तुम सावचेत रहते हो , तो एक तीसरी बात घटित होती है .
        पहली तो बात कि छींक गैर-स्वैच्छिक है . तुम उसमें एक नई चीज जोड़ते हो , सजगता जोड़ते हो . और जब सजगता आती है तो संभव है कि छींक न आये . अगर तुम सचमुच सजग होगे , तो वह नहीं आएगी . शायद छींक एकदम खो जाए . तब तीसरी बात घटित होती है . जो ऊर्जा छींक की राह से निकलने वाली थी वह अब कहां जाएगी ? वह ऊर्जा तुम्हारी सजगता में जुड़ जाती है . अचानक बिजली सी कौंधती है , और तुम ज्यादा सावचेत हो जाते हो . जो ऊर्जा छींक बनकर बाहर निकलने जा रही थी वही ऊर्जा तुम्हारी सजगता में जुड़ जाती है और तुम अचानक अधिक सावचेत हो जाते हो . बिजली की उस कौंध में बुद्धत्व भी संभव है .


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