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    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 22

    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 22

    ("अपने अवधान को ऐसी जगह रखो , जहाँ तुम अतीत की किसी घटना को देख रहे हो और अपने शरीर को भी . रूप के वर्तमान लक्षण खो जायेंगे , और तुम रूपांतरित हो जाओगे .")


    तम अपने अतीत को याद कर रहे हो .चाहे वह कोई भी घटना हो ; तुम्हारा बचपन , तुम्हारा प्रेम , पिता या माता कि मृत्यु , कुछ भी हो सकता है . उसे देखो . लेकिन उससे एकात्म मत होओ . उसे ऐसे देखो जैसे वह किसी और के जीवन में घटा हो . उसे ऐसे देखो जैसे वह घटना परदे पर फिर से घट रही हो , फिल्माई जा रही हो , और तुम उसे देख रहे हो - उससे अलग , तटस्थ , साक्षी की तरह . उस फिल्म में , कथा में तुम्हारा बीता रूप फिर उभर जायेगा  यदि तुम अपनी कोई प्रेम कथा स्मरण कर रहे हो , अपने प्रेम की पहली घटना , तो तुम अपनी प्रेमिका के साथ स्मृति के परदे पर प्रकट होओगे और तुम्हारा अतीत का रूप प्रेमिका के साथ उभर आएगा . अन्यथा तुम उसे याद न कर सकोगे . अपने इस अतीत के रूप से भी तादात्म्य हटा लो . पूरी घटना को ऐसे देखो मानो कोई दूसरा पुरुष किसी दूसरी स्त्री को प्रेम कर रहा है , मानो पूरी कथा से तुम्हारा कुछ लेना-देना नहीं है ; तुम महज दृष्टा हो , गवाह हो .

         यह विधि बहुत-बहुत बुनियादी है , इसे बहुत प्रयोग में लाया गया-- विशेषकर बुद्ध के द्वारा . और इस विधि के अनेक प्रकार हैं . इस विधि के प्रयोग का अपना ढंग तुम खुद खोज ले सकते हो . उदाहरण के लिए , रात में जब तुम सोने लगो , गहरी नींद में उतरने लगो तो पूरे दिन के अपने जीवन को याद करो . इस याद की दिशा उलटी होगी , यानी उसे सुबह से न शुरू कर वहां से शुरू करो जहा तुम हो . अभी तुम बिस्तर में पड़े हो तो बिस्तर में लेटने से शुरू कर पीछे लौटो . और इस तरह कदम-कदम पीछे चलकर सुबह की उस घटना पर पहुँचो जब तुम नींद से जागे थे . अतीत स्मरण के इस क्रम में  सतत याद रखो कि पूरी घटना से तुम पृथक हो , अछूते हो . उदाहरण के लिऐ , पिछले प्रहर तुम्हारा किसी ने अपमान किया था ; तुम अपने रूप को अपमानित होते हुए देखो , लेकिन द्रष्टा बने रहो . तुम्हें इस घटना में फिर नहीं उलझना है , फिर क्रोध नहीं करना है . अगर तुमने क्रोध किया तो तादात्म्य पैदा हो गया . तब ध्यान का बिंदु तुम्हारे हाथ से छूट गया . इसलिये क्रोध मत करो . वह अभी तुम्हें अपमानित नहीं कर रहा है , वह तुम्हारे पिछले पहर के रूप को अपमानित कर रहा है . वह रूप अब नहीं हैं .तुम तो एक बहती नदी की तरह हो जिसमें तुम्हारे रूप भी बह रहे हैं . बचपन में तुम्हारा एक रूप था , अब वह नहीं है . वह जा चुका . नदी की भांति तुम निरंतर बदलते जा रहे हो .

          रात में ध्यान करते हुए जब दिन कि घटनाओं को उलटे क्रम में , प्रतिक्रम में याद करो तो ध्यान रहे कि तुम साक्षी हो , कर्ता नहीं . क्रोध मत करो . वैसे ही जब कोई तुम्हारी प्रशंसा करे तो आह्लादित मत होओ . फिल्म की तरह उसे भी उदासीन होकर देखो . प्रतिक्रमण बहुत  उपयोगी है , खासकर उनके लिए जिन्हें निद्रा की तकलीफ हो . अगर तुम्हें ठीक से नींद नहीं आती है , अनिद्रा का रोग है , तो यह प्रयोग तुम्हें  बहुत सहयोगी होगा . क्यों ? क्योंकि यह मन को खोलने का , निर्ग्रन्थ करने का उपाय है . जब तुम पीछे लौटते हो तो मन की तहें उघड़ने लगती हैं . सुबह में जैसे घड़ी में चाबी देते हो वैसे तुम अपने मन पर भी तहें लगाना शुरू करते हो . दिनभर में मन पर अनेक विचारों और घटनाओं के संस्कार जम जाते हैं ; मन उनसे बोझिल हो जाता है . अधूरे और अपूर्ण संस्कार मन में झूलते रहते हैं , क्योंकि उनके घटित होते समय उन्हें देखनेका मौका नहीं मिला था .

        इसलिए रात में फिर उन्हें लौटकर देखो -- प्रतिक्रम में . यह मन के निर्ग्रन्थ की , सफाई की प्रक्रिया है . और इस प्रक्रिया में जब तुम सुबह बिस्तर से जागने की पहली घटना तक पहुंचोगे तो तुम्हारा मन फिर से उतना ही ताज़ा हो जायेगा जितना ताज़ा वह सुबह था . और तब तुम्हें वैसी नींद आएगी जैसी छोटे बच्चे को आती है . यह विधि गहरे रेचन की विधि है . अगर तुम इसे रोज कर सको तो तुम्हें एक नया स्वास्थ्य और एक नई ताजगी का अनुभव होगा .


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