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    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 03

    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 03

    ( " जब श्वास नीचे से ऊपर की ओर मुड़ती है , और फिर जब श्वास ऊपर से नीचे की ओर मुड़ती है -- इन दो मोड़ों के द्वारा उपलब्ध हो . " )


    थोड़ फर्क के साथ यह वही विधि है , जोर अब अंतराल पर न होकर मोड़ पर है . बाहर जाने वाली ओर अंदर आने वाली श्वास एक वर्तुल बनाती हैं . याद रहे , वे समानांतर रेखाओं की तरह नहीं हैं . हम सदा सोचते हैं कि आने वाली श्वास और जाने वाली श्वास दो समानांतर रेखाओं की तरह हैं . मगर वे ऐसी हैं नहीं . भीतर आने वाली श्वास आधा वर्तुल बनाती है और शेष आधा वर्तुल बाहर जाने वाली श्वास बनाती है .

      इसलिए पहले यह समझ लो कि श्वास और प्रश्वास मिलकर एक वर्तुल बनातीं हैं . और वे समानांतर रेखाएं नहीं है ; क्योंकि समानांतर रेखाएं कहीं नहीं मिलती हैं . दूसरा यह कि आने वाली और जाने वाली श्वास दो नहीं है , वे एक हैं . वही श्वास जो भीतर आती है , बाहर भी जाती है . इसलिए भीतर उसका कोई मोड़ अवश्य होगा ; वह कहीं जरूर मुड़ती होगी . कोई बिंदु होगा , जहाँ आने वाली श्वास जाने वाली श्वास बन जाती होगी .

       लेकिन मोड़ पर इतना जोर क्यों है ?

     अगर तुम कार चलाना जानते हो तो तुम्हें गियर का पता होगा . हर बार जब तुम गियर बदलते हो तो तुम्हें न्यूट्रल गियर से गुजरना पड़ता है जो कि गियर बिलकुल नहीं है . तुम पहले गियर से दूसरे गियर में जाते हो और दूसरे से तीसरे  गियर में . लेकिन सदा तुम्हें न्यूट्रल गियर से होकर जाना पड़ता है .  वह न्यूट्रल  गियर घुमाव का बिंदु है , मोड़ है . उस मोड़ पर पहला गियर दूसरा बन जाता है और दूसरा तीसरा बन जाता है .

     वैसे ही जब तुम्हारी श्वास भीतर जाती है और घूमने लगती है तो उस वक्त वह न्यूट्रल गियर में होती है ; नहीं तो वह नहीं घूम सकती . उसे तटस्थ क्षेत्र से गुजरना पड़ता है .

      उस तटस्थ क्षेत्र में तुम न तो शरीर हो और न मन ही हो ; न शारीरिक हो , न मानसिक हो . क्योंकि शरीर तुम्हारे अस्तित्व का एक गियर है और मन उसका दूसरा गियर है . तुम एक गियर से दूसरे गियर में गति करते हो , इसलिए तुम्हें एक न्यूट्रल गियर की जरूरत है जो न शरीर हो और न मन हो . उस तटस्थ क्षेत्र में तुम मात्र हो , मात्र अस्तित्व -- शुद्ध सरल , अशरीरी और मन से मुक्त  . यही कारण है कि घुमाव-बिंदु  पर , मोड़ पर इतना जोर है .


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