संत कबीर पूर्णिमा
“परम प्यारे ओशो, प्यारे सदगुरू त्रिवीर समस्त सिद्धों, समस्त संतो और समस्त देवों के प्रीति अहोभवमाय प्रेमनामन। "
२६-०६-२०१० संत कबीर पूर्णिमा सम हम मित्रो न गोविन्द से जुडकर संत कबीर जी को मुख्य निमन्त्रण दिया ,
कि आप आयें और हमें अपना आशीष प्रदान करें. फिर हम गोविन्द के सुमिरन में डूब गए, हमारा एक प्यारा मित्र सौरव फोटो लेने का काम करने लगा। कुछ समय बाद अचानक मेरे भीतर कुछ डोलने लगा और एक अपूर्व आनंद छाने लगा, तभी मुझे बड़े सद्गुरु की बात याद आई कि संत जब आते हैं तो हमें उनकी उपस्थिति फील होती है. उन्होंने हमें दैवीय आनंद की अनुभूति करा कर आशीष प्रदान किया. उसके पश्चात हमने उन्हें प्रेम पूर्ण विदाई दी.
सद्गुरु त्रिविर के प्यारे श्री चरन्-कम्लो मे अहोभावमय प्रेम नमन ,जिनकी कृपा से यह हुआ। अहोभाव । । । अहोभाव । । । अहोभाव । ।
२६-०६-२०१० संत कबीर पूर्णिमा सम हम मित्रो न गोविन्द से जुडकर संत कबीर जी को मुख्य निमन्त्रण दिया ,
कि आप आयें और हमें अपना आशीष प्रदान करें. फिर हम गोविन्द के सुमिरन में डूब गए, हमारा एक प्यारा मित्र सौरव फोटो लेने का काम करने लगा। कुछ समय बाद अचानक मेरे भीतर कुछ डोलने लगा और एक अपूर्व आनंद छाने लगा, तभी मुझे बड़े सद्गुरु की बात याद आई कि संत जब आते हैं तो हमें उनकी उपस्थिति फील होती है. उन्होंने हमें दैवीय आनंद की अनुभूति करा कर आशीष प्रदान किया. उसके पश्चात हमने उन्हें प्रेम पूर्ण विदाई दी.
सद्गुरु त्रिविर के प्यारे श्री चरन्-कम्लो मे अहोभावमय प्रेम नमन ,जिनकी कृपा से यह हुआ। अहोभाव । । । अहोभाव । । । अहोभाव । ।