अंधविश्वासों की जगह वैज्ञानिक चिंतना जगह ले - ओशो
यूवक क्रांति दल मेरे प्रिय, प्रेम। मैं प्रवास में था। लौटा हूं तो तुम्हारा पत्र मिला है। जीवन जागृति केंद्र के मित्रो से मिलकर यु...
यूवक क्रांति दल मेरे प्रिय, प्रेम। मैं प्रवास में था। लौटा हूं तो तुम्हारा पत्र मिला है। जीवन जागृति केंद्र के मित्रो से मिलकर यु...
प्यारी कुसुम, प्रेम। एक ऐसा संगीत भी है, जहां कि स्वर नहीं है। प्राण उस स्वर शून्य संगीत के लिए ही आतुर है। एक ऐसा प्रेम भी है, ज...
प्रिय मथुरा बाबू, प्रेम। पत्र मिला है। प्रयोजन खोजते ही क्यों हैं? खोजेंगे तो वह मिलेगा ही नहीं। क्योंकि, वह तो सदा खोजने वाले मे...
मेरे प्रिय, प्रेम। विश्राम परम लक्ष्य है, श्रम साधन । पूर्ण विश्राम परम लक्ष्य है जहां कि श्रम से पूर्ण मुक्ति है। फिर जीवन लील...
प्यारी कुसुम, प्रेम। तेरा पत्र मिल गया है। गर्मी के बाद जैसे धरती वर्षा के लिए प्यासी होती है; ऐसे ही तू प्रभू के लिए प्यासी है...
प्यारी अनुसूया,प्रेम। लिखा है तूने कि टूट सी गई है। अच्छा है कि बिलकुल ही टूट जा, मिट ही जा। जो है-वह तो सदा ही है, लेकिन जो हुआ ...
मेरे मित्र, प्रेम। आनंद को चाहो ही मत। क्योंकि, वह चाह ही आनंद के मार्ग में बाधा है। जीवन को जियो। चाह के किनारों में बांधकर नहीं...
मेरे प्रिय, प्रेम। तुम्हारा पत्र मिला। काम वासना से भयभीत न हों। क्योंकि भय हार की शुरुआत है। उसे भी स्वीकार करें। वह भी है और अन...
मेरे प्रिय, प्रेम। आपका पत्र पाकर अति आनंदित हूं। जीवन में चिंताएं हैं, लेकिन चिंतित होना आवश्यक नहीं है। क्योंकि, चिंतित होना ...
प्यारी दर्शन, प्रेम। तेरा पत्र मिला है। उसे पाकर अति आनंदित हूं। इसलिए भी कि तूने अनलिखा-कोरा कागज भेजा है। लेकिन, मैंने उसमें वह...
प्यारी कंचन, प्रेम। तेरा पत्र और तेरी जिज्ञासा । मैं जहां है वही वाधा है। इसलिए प्रतिपल-जागते सोते, उठते-उठते-मैं के प्रति सजग वह...
मेरे प्रिय, प्रेम। तुम्हारा पत्र पाकर कितना आनंदित हूं? कैसे कहूं? जब भी तुम्हें देखता था लगता था : कब तक-कव तक दूर रहोगे? और जान...
प्यारी कंचन, प्रेम। तेरा पत्र मिले बहुत देर हो गई है। और प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा करते करते भी तू थक गई होगी! लेकिन धैर्य पूर्ण...
प्यारी डाली, प्रेम। तेरे पत्र मिले हैं। लेकिन उन्हें केवल पत्र ही तो कहना कठिन है? वस्तुतः तो वे प्रेम से जन्मी कविताएं हैं। प्रे...
प्यारी अनसूया, प्रेम। तेरे पत्र ने हृदय को आनंद से भर दिया है। एक बड़ी क्रांति के द्वार पर तू खड़ी है। और तू उससे भागना भी चाहे त...
प्यारी कुसुम, प्रेम। मैं बाहर से लौटा हूं तो तेरे पत्र मिले हैं। भूमि में पड़ा वीज जैसे वर्षा की प्रतीक्षा करता है, ऐसे ही प्रभु ...
प्यारी कुसुम प्रेम। तेरे हृदय की भांति ही सरल और कुआंरा पत्र पाकर अति आनंदित हूं। वह तू लिखना चाहती है जो कि लिखा ही नहीं जा सकता...
मेरे प्रिय,प्रेम। ऐसा कहां होता है कि दो व्यक्तियों में मिलन हो पाए? इस पृथ्वी पर तो नहीं ही होता है न? संवाद असंभव ही प्रतीत होता...
प्यारी शिरीष प्रेम से बड़ी चीज और देने को क्या है? और फिर भी तू कहती है : क्या दिया है मैंने ? पागल! प्रेम देने के बाद तो फिर न द...
प्यारी शिरीष, यह शुभ है कि तू अतीत को भूल रही है। इससे जीवन के एक विलकुल ही अभिनव दिशा आरंभ होगी। वर्तमान में पूरी तरह होना ही मु...
प्रिय शिरीष, प्रेम। तुम्हारा पत्र। संसार चक्र घूम रहा है, लेकिन उसके साथ तुम क्यों घूम रही हो? शरीर और मन के भीतर जो है, उसे देखो...
प्रिय शिरीष, प्रेम। पत्र मिला। एमग के संबंध में पूछा है। वह शक्ति भी परमात्मा की है। साधना से क्रमशः उसका भी रूपांतरण (तंदेवितउंज...
प्रिय शिरीष, प्रेम। एमदेम व भनउवनत के संबंध में पूछा है। मिलोगी तभी विस्तार से बात हो सकेगी। लेकिन सबसे पहले विनोद का भाव स्वयं क...
प्रिय, शिरीष, मैं प्रवास से लौटा हूं तो तुम्हारा पत्र मिला है। जिस संकल्प का तुम्हारी अंतरात्मा में जन्म हो रहा है, मैं उसका स्वा...
प्रिय शिरीष, प्रेम। उस दिन मिलकर मैं बहुत आनंदित हुआ हूं। तुम्हारे हृदय में जो आंदोलन चल रहा है, वह भी मैंने अनुभव किया और वह अभी...
प्रिय शिरीष, प्रेम। प्रभु के लिए ऐसी प्यास से आनंदित हूं। सौभाग्य से ही ऐसी प्यास होती है और जहां प्यास है वहां मार्ग भी है। वस्त...
प्यारी जया, प्रेम। तेरा पत्र मिला है। प्रेम मांगना नहीं पड़ता है और मांगे से वह मिलता भी नहीं है। प्रेम तो देने से आता है। वह तो ...
प्रिय आत्मन, प्रणाम। आपके पत्र यथा समय मिल गए थे–पर मैं बहुत व्यस्त था इसलिए शीघ्र उत र नहीं दे सका। इस बीच निरंतर बाहर ही था; अभ...
मेरे प्रिय, प्रेम। जागृति में ही जागे। निद्रा या स्वप्न में जागने का प्रयास न करें। जागृति में जागने के परिणाम स्वरूप ही अनायास न...
मेरे प्रिय, प्रेम। पत्र पाकर आनंदित हूं। बूंद को सागर बनना नहीं है। यही उसे जानना है। जो है-जैसा है-उसे वही और वैसा ही जानना सत्य...
चिदात्मन, आपके पत्र मिले । मैं वाहर था। अत: शीघ्र प्रत्युत्तर संभव नहीं हो सका। अभी अभी ल औटा हूं, राणकपुर में शिविर लिया था, वह ...
कोई बुद्धिमान आदमी कभी किसी का अनुयायी नहीं बनता - ओशो जो आदमी भी किसी का अनुयायी बनता है, वह आदमी पहली तो बात है खतरनाक है, डेंजरस है। क्य...