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    अंधविश्वासों की जगह वैज्ञानिक चिंतना जगह ले - ओशो

    9:49:00 am 0

    यूवक क्रांति दल मेरे प्रिय, प्रेम।            मैं प्रवास में था। लौटा हूं तो तुम्हारा पत्र मिला है। जीवन जागृति केंद्र के मित्रो से मिलकर यु...

    प्राणों की आतुरता - ओशो

    9:49:00 am 0

    प्यारी कुसुम, प्रेम।            एक ऐसा संगीत भी है, जहां कि स्वर नहीं है। प्राण उस स्वर शून्य संगीत के लिए ही आतुर है। एक ऐसा प्रेम भी है, ज...

    जीवन निष्प्रयोजन है - ओशो

    9:49:00 am 0

    प्रिय मथुरा बाबू, प्रेम।            पत्र मिला है। प्रयोजन खोजते ही क्यों हैं? खोजेंगे तो वह मिलेगा ही नहीं। क्योंकि, वह तो सदा खोजने वाले मे...

    जीवन-दृष्टि - ओशो

    9:49:00 am 0

      मेरे प्रिय, प्रेम।            विश्राम परम लक्ष्य है, श्रम साधन । पूर्ण विश्राम परम लक्ष्य है जहां कि श्रम से पूर्ण मुक्ति है। फिर जीवन लील...

    प्रभु की प्यास- ओशो

    9:49:00 am 0

      प्यारी कुसुम, प्रेम।            तेरा पत्र मिल गया है। गर्मी के बाद जैसे धरती वर्षा के लिए प्यासी होती है; ऐसे ही तू प्रभू के लिए प्यासी है...

    विलकुल ही टूट जा, मिट जा - ओशो

    9:49:00 am 0

    प्यारी अनुसूया,प्रेम।            लिखा है तूने कि टूट सी गई है। अच्छा है कि बिलकुल ही टूट जा, मिट ही जा। जो है-वह तो सदा ही है, लेकिन जो हुआ ...

    जियो उन्मुक्त, पल-पल - ओशो

    9:49:00 am 0

    मेरे मित्र, प्रेम।            आनंद को चाहो ही मत। क्योंकि, वह चाह ही आनंद के मार्ग में बाधा है। जीवन को जियो। चाह के किनारों में बांधकर नहीं...

    काम-वृत्ति पर ध्यान - ओशो

    9:49:00 am 0

    मेरे प्रिय, प्रेम।            तुम्हारा पत्र मिला। काम वासना से भयभीत न हों। क्योंकि भय हार की शुरुआत है। उसे भी स्वीकार करें। वह भी है और अन...

    चिंताओं का अतिक्रमण - ओशो

    9:49:00 am 0

      मेरे प्रिय, प्रेम।            आपका पत्र पाकर अति आनंदित हूं। जीवन में चिंताएं हैं, लेकिन चिंतित होना आवश्यक नहीं है। क्योंकि, चिंतित होना ...

    अनलिखा पत्र - ओशो

    9:49:00 am 0

    प्यारी दर्शन, प्रेम।            तेरा पत्र मिला है। उसे पाकर अति आनंदित हूं। इसलिए भी कि तूने अनलिखा-कोरा कागज भेजा है। लेकिन, मैंने उसमें वह...

    मैं-एक स्वप्न-एक निद्रा - ओशो

    9:44:00 am 0

    प्यारी कंचन, प्रेम।            तेरा पत्र और तेरी जिज्ञासा । मैं जहां है वही वाधा है। इसलिए प्रतिपल-जागते सोते, उठते-उठते-मैं के प्रति सजग वह...

    मौन अभिव्यक्ति - ओशो

    9:43:00 am 0

    प्यारी कुसुम प्रेम।            तेरे हृदय की भांति ही सरल और कुआंरा पत्र पाकर अति आनंदित हूं। वह तू लिखना चाहती है जो कि लिखा ही नहीं जा सकता...

    अंतर्मिलन - ओशो

    9:43:00 am 0

    मेरे प्रिय,प्रेम।           ऐसा कहां होता है कि दो व्यक्तियों में मिलन हो पाए? इस पृथ्वी पर तो नहीं ही होता है न? संवाद असंभव ही प्रतीत होता...

    प्रेम के स्वर - ओशो

    9:43:00 am 0

    प्यारी शिरीष            प्रेम से बड़ी चीज और देने को क्या है? और फिर भी तू कहती है : क्या दिया है मैंने ? पागल! प्रेम देने के बाद तो फिर न द...

    स्वयं की कील - ओशो

    9:39:00 am 0

    प्रिय शिरीष, प्रेम।            तुम्हारा पत्र। संसार चक्र घूम रहा है, लेकिन उसके साथ तुम क्यों घूम रही हो? शरीर और मन के भीतर जो है, उसे देखो...

    सेक्स-ऊर्जा का रूपांतरण - ओशो

    9:39:00 am 0

    प्रिय शिरीष, प्रेम।            पत्र मिला। एमग के संबंध में पूछा है। वह शक्ति भी परमात्मा की है। साधना से क्रमशः उसका भी रूपांतरण (तंदेवितउंज...

    प्रगाढ़ संकल्प - ओशो

    9:39:00 am 0

    प्रिय, शिरीष,            मैं प्रवास से लौटा हूं तो तुम्हारा पत्र मिला है। जिस संकल्प का तुम्हारी अंतरात्मा में जन्म हो रहा है, मैं उसका स्वा...

    प्रेम की वर्षा - ओशो

    9:39:00 am 0

    प्यारी जया, प्रेम।            तेरा पत्र मिला है। प्रेम मांगना नहीं पड़ता है और मांगे से वह मिलता भी नहीं है। प्रेम तो देने से आता है। वह तो ...

    साधना में धैर्य - ओशो

    9:39:00 am 0

    प्रिय आत्मन, प्रणाम।            आपके पत्र यथा समय मिल गए थे–पर मैं बहुत व्यस्त था इसलिए शीघ्र उत र नहीं दे सका। इस बीच निरंतर बाहर ही था; अभ...

    बूंद सागर है ही - ओशो

    9:38:00 am 0

    मेरे प्रिय, प्रेम।            पत्र पाकर आनंदित हूं। बूंद को सागर बनना नहीं है। यही उसे जानना है। जो है-जैसा है-उसे वही और वैसा ही जानना सत्य...

    दर्शन का जागरण - ओशो

    8:27:00 am 0

    चिदात्मन,            आपके पत्र मिले । मैं वाहर था। अत: शीघ्र प्रत्युत्तर संभव नहीं हो सका। अभी अभी ल औटा हूं, राणकपुर में शिविर लिया था, वह ...