जीवन में इतना दुख क्यों है ? - ओशो
मेरे प्रिय, प्रेम। मनुष्य के जीवन में इतना दुख क्यों है? क्योंकि, उसके जीवन में स्वरों की तो भीड़ है, लेकिन, स्वर शून्यता बिल...
मेरे प्रिय, प्रेम। मनुष्य के जीवन में इतना दुख क्यों है? क्योंकि, उसके जीवन में स्वरों की तो भीड़ है, लेकिन, स्वर शून्यता बिल...
प्यारी सावित्री, प्रेम। ध्यान में फलाकांक्षा न रखो। उससे वाधाएं निर्मित होती हैं। ध्यान के किसी अनुभव की पूनरुक्ति भी न च...
प्यारी कुसुम, प्रेम। संसार है निर्वाण। ध्वनि मात्र है मंत्र। और, प्राणि मात्र परमात्मा । बस, सब कुछ स्वयं की दृष्टि पर न...
मेरे प्रिय, प्रेम। स्व को समर्पित करने के बाद न कोई कष्ट है, न कोई दुख है। क्योंकि, मूलतः स्व ही समस्त दुखों का आधार हैं। और फिर ...
प्यारी नीलम, प्रेम। जीवन का प्रयोजन न खोज। वरन जी-पूरे हृदय से। जीवन को गंभीरता मत बना। नृत्य बना। सागर की लहरें जैसे नाचती हैं, ...
मेरे प्रिय, प्रेम। प्रभु का काम ही मेरा काम है। उसके अतिरिक्त न मैं हूं, न कुछ मेरा है, और न कोई काम ही है। प्रभु में जियो-बस, फि...
मेरे प्रिय, प्रेम। सुबह सूर्योदय के स्वागत में जैसे पक्षी गीत गाते हैं ऐसे ही ध्यानोदय के पूर्व भी मन प्राण में अनेक गीतों का जन्...
प्रिय, ललिता, प्रेम। प्राण जिसे खोजते हैं, उसे पा ही लेते हैं। विचार ही सघन होकर वस्तु बन जाते हैं।सरिता जैसे सागर खोज लेती है,...
प्रिय सत्यानंद, प्रेम। मेरे शुभाशीष। सत्य में जियो-क्योंकि सत्य को जानने का कोई उपाय नहीं है। सत्य ही हो जाओ-क्योंकि सत्य केवल सत...
मेरे प्रिय, प्रेम। विचार ही मनुष्य की शक्ति है। और वही विश्वास ने उससे छीन ली है। मनुष्य इसीलिए दीन-हीन और निर्वीर्य हो गया है...
प्रिय जयति, प्रेम। प्रभु सब भांति निखारता है। शुद्ध होने के लिए, स्वर्ण को ही नहीं, मनुष्य को भी अग्नि में से गुजरना पड़ता है। प्...
प्यारी जयति, प्रेम। प्रभु के मंदिर में नाचते-गाते, आनंद मनाते ही प्रवेश होता है। उदास चित्त की वहां कोई गति नहीं है। इसलिए, उदासी...
मेरे प्रिय, प्रेम। ध्यान के जल स्रोत निकट ही हैं। लेकिन दमित काम की पर्ते चट्टानों का काम कर रही हैं। काम का दमन ही आपके जीवन को ...
प्यारी जयति, प्रेम। तेरा पत्र मिला है। पगली! मेरे लिए कभी भी, भूलकर भी चिंतित मत होना। दो कारणों से: एक तो प्रभु के हाथों में जिस...
प्यारी रेखा, प्रेम। तेरा पत्र मिला है। उसमें तूने इतने प्रश्न पूछे हैं, कि उत्तर के लिए मुझे महाभारत से भी बड़ी किताब िलखनी पड़ेग...
प्यारी गुणा, प्रेम। स्वप्न भी सत्य है। क्योंकि, जिसे हम सत्य कहते हैं, वह भी स्वप्न से ज्यादा कहां है? खुली और बंद आंख से ज्यादा ...
मेरे प्रिय, प्रेम। काश! वीणा बाहर होती तो संगीत भी सूना जा सकता था! लेकिन, वीणा भीतर है, इसलिए संगीत सुना नहीं जा सकता है। हां-संग...
प्यारी कुसुम, प्रेम। खोज-खोज-और खोज। इतना कि अंततः खोजते-खोजते स्वयं ही खो जावें।बस वही बिंदु उसके मिलन का है। इधर मैं मिटा, उधर ...
प्रिय मायाजी, प्रेम। आपका पत्र पाकर आनंदित हूं। मैं को छोड़ना नहीं है। क्योंकि, जो है ही नहीं, उसको छोड़ियेगा कैसे? मैं को समझना ...
मेरे प्रिय, प्रेम। अर्थ (उमंदपदह) की खोज ही अनर्थ है। अर्थ की खोज ने ही अर्थहीनता (उमंदपदहसमेदमे) तक पहुंचा दिया है। अर्थ नहीं है...
प्रिय मथुरा वाबू, प्रेम। आपका पत्र मिला है। यह जानकर आनंदित हूं कि मां की मृत्यु से आपको स्वयं की मृत्यु का खयाल आया है। मृत्यु क...
मेरे प्रिय, प्रेम। जल्दी न करें। कभी-कभी जल्दी ही देरी बन जाती है। प्यास के साथ प्रतीक्षा भी जोड़ें। जितनी गहरी प्रतीक्षा हो, उतनी...
प्रिय रामचंद्र प्रेम! मेरी दस आज्ञाएं (मं विउउंदकउमदजे) पूछी हैं। बड़ी कठिन बात है। क्योंकि, मैं तो किसी भी भांति की आज्ञाओं के विरोध ...
मेरे प्रिय, प्रेम। विरह शूभ है। प्यास शूभ है। पूकार शूभ है। क्योंकि आसुओं के मार्ग से ही तो उसका आगमन होता है। रोओ, लेकिन इतना क...
प्यारी जयति. प्रेम। तेरा पत्र पाकर आनंदित हूं। इतनी ही पीड़ा झेलनी पड़ती है-यह तो प्रसव पीड़ा है न, स्वयं को जन्म देने की प्रस व ...
कोई बुद्धिमान आदमी कभी किसी का अनुयायी नहीं बनता - ओशो जो आदमी भी किसी का अनुयायी बनता है, वह आदमी पहली तो बात है खतरनाक है, डेंजरस है। क्य...