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    नीति नहीं, योग-साधना - ओशो

    8:27:00 am 0

    प्रिय, आत्मन, प्रणाम।                 मैं अभी अभी राज नगर (राजस्थान) लौटा हूं। वहां आचार्य श्री तुलसी के म र्यादा महोत्सव में आमंत्रित था ।...

    योग-अनुसंधान - ओशो

    8:27:00 am 0

    प्रिय आत्मन, प्रणाम।            आपका पत्र पढ़ कर अत्यंत प्रसन्नता हुई। मैं अभी तो कुछ भी नहीं लिखा हूं।एक ध्यान केंद्र जरूर यहां बनाया है, ज...

    प्रतीक्षा - ओशो

    8:27:00 am 0

    प्यारी जया,           प्रेम। तेरा पत्र मिला है। तेरे प्राणों की प्यास को, मैं भलीभांति जानता हूं। और वह क्षण भी दूर नहीं है, जव वह तृप्त हो ...

    जीवन : जल पर खींची रेखा-सा - ओशो

    8:26:00 am 0

    मेरे प्रिय, प्रेम।            आपका पत्र मिला है। जन्म-समय की खोज-खवर करनी पड़ेगी। दिन शायद ११ दिसंबर है। लेकिन यह भी पक्का नहीं। लेकिन ज्योत...

    कूद पड़ो-शून्य में - ओशो

    8:26:00 am 0

    प्रभात            मेरे प्रिय, प्रेम।                      तुम्हारा पत्र पाकर आनंदित हूं। सत्य अज्ञात है और इसलिए उसे पाने के लिए ज्ञात को छो...

    जिसे भी सत्य को पाना है, उसे सत्य के संबंध में सारे मत छोड़ने होंगे - ओशो

    8:58:00 am 0

    जिसे भी सत्य को पाना है, उसे सत्य के संबंध में सारे मत छोड़ने होंगे - ओशो            मेरे पड़ोस में, गांव में एक आदमी रहता था। वह जंगल से त...

    तैरें नहीं, बहें - ओशो

    8:26:00 am 0

      मेरे प्रिय, प्रेम।            पत्र मिला है। मैं तो सदा साथ हूं। न चिंतित हों, न उदास। साधना को भी पर मात्मा के हाथों में छोड़ दें। जो उसकी...

    शक्ति स्वयं के भीतर है - ओशो

    7:38:00 am 0

       प्रिय कृष्ण चैतन्य,       प्रेम।                 तुम्हारा पत्र पाकर आनंदित हूं। शक्ति है तुम्हारे स्वयं के भीतर। लेकिन, उसका तुम्हें पता ...

    जीवन की अखंडता - ओशो

    8:26:00 am 0

    मेरे प्रिय, प्रेम।            आपका प्रेमपूर्ण पत्र पाकर अत्यंत अनुगृहीत हूं। लेकिन, जीवन को मैं अखंड मानता हूं। और उसे खंड खंड तोड़कर देखने ...

    ढाई आखर प्रेम का - ओशो

    7:28:00 am 0

    प्रिय सोहन,            तू इतने प्यारे पत्र लिखेगी, यह कभी सोचा भी नहीं था! और ऊपर से लिखती है कि मैं अपढ़ हूं! प्रेम से बड़ा कोई ज्ञान नहीं ...

    प्रेम की मिठास - ओशो

    7:28:00 am 0

      प्रिय सोहन, स्नेह।            मैं वाहर से लौटा तो तुम्हारे पत्र की प्रतीक्षा थी। पत्र और अंगूर साथ ही मिले।पत्र जो कि वैसे ही इतना मीठा था...